مہرا/महरा/मिहरा/ मुहरा/
ये तीनो लफ्ज़ जिनके आखिर मे अलिफ़ आता है हिंदी के हैं इनका भी उच्चारण से मतलब बदल जाता है
इसमें महरा भी पुर्लिंग है और मुहरा भी पुर्लिंग है
महरा=Mehra पुर्लिंग
अर्थ -डोली या पालकी उठाने वाला कहार,और कहारों का मुखिया अफसर
मुहरा Muhra/मोहरा (पुर्लिंग)
अर्थ=जिसकी आड़ ली जाए,सामना,निशाना,ज़द
मुहावरे =मुहरा बनाना,मुहरा बनना,आदि
मिहरा/mihra हिंदी इसका अर्थ है वो मर्द जिस मे हाव-भाव ज़नाना हों यानि जो औरतो जैसा बर्ताव करे अंग्रेजी मे इसे गे कहते हैं ,इसी से देहाती लफ्ज़ मेहरारू बना है
مہرہ / मुहरा /अगर उसके आखिर मे उर्दू की ह लिखी जाए तो ये शब्द फ़ारसी का हो जाता है जो पुर्लिंग होता है
और ये शब्द शतरंज के मुहरे के तौर पर आम हुआ इसके और अर्थ हैं=शतरंज का मुहरा,गोट,कोडी,सीप,एक खास किस्म का पत्थर,
Monday, December 6, 2010
1857 का नायक कालू माहरा
1857 का नायक कालू माहरा
« on: May 11, 2007, 04:50:43 PM »
लोहाघाट (चंपावत)। देश की आजादी की पहली लड़ाई में काली कुमाऊं की अहम भूमिका रही है। यहां से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ उठा विरोध का स्वर भले ही अंजाम तक न पहुंचा हो, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने देने वाले इस विद्रोह ने पूरी क्रांति नया रंग दे दिया और इसी क्रांति के चलते काली कुमाऊं के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी जान देश के लिए न्यौछावर कर दी।
काली कुमाऊं में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का झंडा कालू सिंह महरा ने बुलंद किया। उन्होंने पहले स्वतंत्रता संग्राम में काली कुमाऊं के लोगों की मंशा को भी विद्रोह के जरिए जाहिर करावा दिया। हालांकि इसकी कुर्बानी उन्हे स्वयं तो चुकानी ही पड़ी साथ ही उनके दो विश्वस्त मित्र आनंद सिंह फत्र्याल व विशन सिंह करायत को अंग्रेजों ने लोहाघाट के चांदमारी में गोली से उड़वा दिया।
आजादी की पहली लड़ाई में काली कुमाऊं में हुआ गदर आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यहां कालू सिंह महरा के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ हुई बगावत ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला कर रख दी थी। सिर्फ कालू महरा ही नहीं बल्कि आनंद सिंह फत्र्याल और बिशन सिंह करायत ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। कालू सिंह महरा का जन्म लोहाघाट के नजदीकी गांव थुआमहरा में 1831 में हुआ। कालू सिंह महरा ने अपने युवा अवस्था में ही अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया। इसके पीछे मुख्य कारण रूहेला के नबाव खानबहादुर खान, टिहरी नरेश और अवध नरेश द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के लिए पूर्ण सहयोग सशर्त देने का वायदा था। इसके बाद कालू माहरा ने चौड़ापित्ता के बोरा, रैघों के बैडवाल, रौलमेल के लडवाल, चकोट के क्वाल, धौनी, मौनी, करायत, देव, बोरा, फत्र्याल आदि लोगों के साथ बगावत शुरू कर दी और इसकी जिम्मेदारी सेनापति के रूप में कालू माहरा को दे दी गई। पहला आक्रमण लोहाघाट के चांदमारी में स्थिति अंग्रेजों की बैरेंकों पर किया गया। आक्रमण से हताहत अंग्रेज वहां से भाग खड़े हुए और आजादी के दिवानों ने बैरोंकों को आग के हवाले कर दिया।
पहली सफलता के बाद नैनीताल और अल्मोड़ा से आगे बढ़ रही अंग्रेज सैनिकों को रोकने के लिए पूरे काली कुमाऊं में जंग-ए-आजादी का अभियान शुरू हुआ। इसके लिए पूर्व निर्धारित शर्तो के अनुरूप पूरे अभियान को तीनों नवाबों द्वारा सहयोग दिया जा रहा था। आजादी की सेना बस्तिया की ओर बढ़ी, लेकिन अमोड़ी के नजदीक क्वैराला नदी के तट पर बसे किरमौली गांव में गुप्त छुपाए गए धन, अस्त्र-शस्त्र को स्थानीय लोगों की मुखबिरी पर अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया और काली कुमाऊं से शुरू हुआ आजादी का यह अभियान बस्तिया में टूट गया। परिणाम यह हुआ कि कालू माहरा को जेल में डाल दिया गया, जबकि उनके नजदीकी सहयोगी आनंद सिंह फत्र्याल एवं बिशन सिंह करायत को लोहाघाट के चांदमारी में अंग्रेजों ने गोली से उड़ा दिया।
अंग्रेजों का कहर इसके बाद भी खत्म नहीं हुआ और अस्सी साल बाद 1937 तक काली कुमाऊं से एक भी व्यक्ति की नियुक्त सेना में नहीं की गई। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने यहां के तमाम विकास कार्य रुकवा दिए और कालू माहरा के घर पर धावा बोलकर उसे आग के हवाले कर दिया। यह पूरा संघर्ष 150 साल पहले काली कुमाऊं के लोहाघाट क्षेत्र से शुरू हुआ और आज इसी याद को ताजा करने यहां के लोगों ने अपने अमर शहीदों की माटी को दिल्ली के लिए रवाना किया।
जो लोग अपना इतिहास भूल जाते हैं,वे कभी अपना इतिहास नहीं बना सकते डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर
जो लोग अपना इतिहास भूल जाते हैं,वे कभी अपना इतिहास नहीं बना सकते डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर |
हमारा इतिहास
सभी मानव जिज्ञासु प्रवत्ति के होते है अपने वर्ग वंश के विकास के लिए ,हम कौन थे यह जानने की लालसा सभी में पाई जाती है|भारत में अनेक जातियों तथा वंश के लोग निवास करते है| जिसमे महार जाती के लोग भारत के कई प्रदेशो में निवास कर रहे है | आज महार जाती का प्राचीन इतिहास समय चक्र में दब गया या जान बुझ कर दबा दिया गया है या नष्ट कर दिया गया है | आज हमें महार जाती के इतिहास को जानना अत्यंत आवश्यक है |महार जाती का जो भी इतिहास आज मालूम है , ज्यादातर अनुमानों पर एवम आर्यों के धार्मिक ग्रंथो पर आधारित है |अतः यह महार जाती का इतिहास तर्क के आधार पर एवम पिछले लेखको एवं बुद्धि जीवियों के ग्रंथो के आधार पर निर्मित है |जनमानस की परंपरागत भावनाओ इच्छाओ को ध्यान में रखा जाए तो महार ही न केवल महाराष्ट्र के बल्कि भारत के मूल निवासी रहे है | सामान्यतः महार शब्द से ही महाराष्ट्र का नामकरण हुआ है | इस मत का समर्थन डॉ केतकर एवम राजराम शास्त्री भागवत ने कियाकुछ दशक पहले महारो की बहुत ही बदहाली एवम विपन्न परिस्थिति के कारन महाराष्ट्र नाम महारो से नहीं आया है ऐसा कुछ लोग अर्थ निकालते है |परन्तु यह विचारधारा बिलकुल भी ठीक प्रतीत नहीं होती है | भूतकाल में महार जाती सम्रद्ध जाती थी ,ऐसा मानना सही प्रतीत होता है | महारो से महाराष्ट्र का नाम आया इस तरह का मानना मोल्यव ने मराठी शब्दकोष में किया है| इसी शब्द की पुनरावर्ती जान विल्सन ने भी की है | तथा इन्ही अर्थो के आधार पर उन्होंने " गाव जहा महारावाडा "इस युक्ति को अमली जामा पहनाया है| महाराष्ट्र की लेखिका इरावती कुर्वे कहती है | "जहा तक महार वहा तक महाराष्ट्र " इससे भी महारो को महाराष्ट्र का मूल निवासी समझा जा सकता है | लेकिन लेखक का मानना है महार जाती के लोग केवल महाराष्ट्र में ही सिमिति नहीं है बल्कि संपूर्ण भारत वर्ष में सभी प्रान्तों में निवास करते है | महारो को प्रत्येक प्रान्त में अलग-अलग नमो से जाना जाता है जैसे मेहरा ,महरा ,महेरा ,जंकी,होलिया,परवारी,सिधवार,चो भारत का प्राचीन इतिहास देखा जाये तो ज्ञात होता है की आर्य लोगो ने भारत में रहने वाले द्रविड़ संस्कृति के लोग नागवंशियों पर आक्रमण कर उन्हें युध्द में पराजित किया तथा उनका बड़ी संख्या में संहार किया ,ये आर्य उत्तर भारत से तथा खैबर दर्रे से झुण्ड बनाकर कबीलों में आये और भारत की प्राचीन द्रविड़ नागवंशी संस्कृति को न केवल नष्ट किया बल्कि उनके इतिहास का विनाश किया | इस सब के बाद भी महार विद्वानों ने अपना इतिहास खोज निकाला | महार जाती का पूर्व नाम नागवंशी या नागलोक था | क्योकि ये जाती बड़ी संख्या में नाग नदी के तट पर निवास करती थी|उनके अनेक नगर थे जब आर्यों ने भारत में पंचनदी प्रदेश में प्रवेश किया तब वह शेष ,बासुकी,ध्रतराष्ट्र ,ऐरावत,अलापत्र ,तक्षक ,काकाकोटक इत्यादी नाग्कुल के नागराजा राज्य करते थे |आर्यों द्वारा नागलोगो को युध्द में पराजित कर उनकी बस्तियों पर कब्जा कर लिया | खांडव वन जलने का मुख्य कारण यह है कि जंगलों में नाग लोग रहते थे |वे समय पर आर्यों से युध्द करते थे | तब आर्यों ने खांडव वन को जलाकर नागलोगो को नष्ट करने का लक्ष्य बनाया इस मन का समर्थन इरावती कर्वे ने अपनी पुस्तक "युगांत" में किया है |कृष्ण-अर्जुन ने तक्षक नाग का वध करने की कोशिश की लेकिन तक्षक मारा नहीं न ही अपने निवास से भागा | तक्षक ने अपने जाती पर होने वाले जुल्म के बदले में राजा परीक्षित को मर डाला | तब परीक्षित के लड़के ने नागलोगो को समूल नष्ट करने का प्रण किया | उसने यज्ञ की शुरुआत की यज्ञ में नागलोगों को पकड़-पकड़ कर आहुति देने का कार्य संपन्न किया डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर कहते थे की आर्य लोगो के मन में नागलोगों के प्रति जो विड्येश भाव के पहले अनंत नमक नागवंशी योद्धा,कर्ण से मुलाकात करके युध्द में उनकी मदद करना चाहता था | लेकिन कर्ण ने इसलिए अस्विकार किया क्योंकि कर्ण आर्य था अनंत नाग यानि अनार्य था | महार भी नागवंशी है उनका निवास स्थान प्रमुख रूप से नागपुर था | महार नागवंशी थे इसका समर्थन डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर तथा राजाराम शास्त्री के द्वारा किया गया है | महारों में नागपूजा और खुद के नाम के आगे नाग लिखना नागवंशी का धोतक है | नागवंशी लोगो के देवता महादेव थे | जो की नागवंशी होने का प्रतिक है | जब आर्य पंचनदी प्रदेश को लांग कर दक्षिण के महाराष्ट्र में आये तो उनकी पहली मुलाकात नागवंशी (महार) लोगों से हुई होगी आर्यों ने नाग लोगो का विनाश किया इस तथ्य को निरुपित करते हुए डॉ बाबा साहेब आम्बेडकर कहते है कि आर्यों की विजय का कारण उनका वाहन था जो कि घोडो पर सवार होकर लड़ते जबकी नागलोग पैदल लड़ते थे इसलिए नाग लोगो को उत्तर से दक्षिण तक हर का सामना करना पड़ा फिर भी नाग लोगो ने यह लडाई बड़ी शूरता से लड़ी जो की आज भी जारी है| |
छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जातियॉं
छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जातियॉं
1. औधेलिया, 2. बागरी, बागड़ी, 3. बहना, बहाना, 4. बलाही, बलाई, 5. बाछड़ा, 6. बराहर, वसोड, 7. वरगुंड़ा, 8. वसोर, वरुड़ बंसोर, बांसोड़ी, बांसफोड़, बसार, 9. बेंड़िया, 10. बेलदार, सुरकर, 11. भंगी, मेहतर, बालमीक, लालवेगी, घरकार, 12. भानुमती, 13. चडार, 14. चमार, चमारी, वैरवा, भांबी, चाटव, मोची रेगड़, नौना, रोहीदास, रामनामी, सतनामी, सुर्यवंशी, सुर्य रामनामी, अहिरवार, चमार मांगन, रैदास, 15. चिदार, 16. चिकवा, चिकवी, 17. चितार, 18. दहायत, दहाइत, दहात, 19. देवार, 20. धानुक, 21. ढ़ेड, ढ़ेर, 22. डोहोर, 23. डोम, डुमार, डोमे, डोमर, डोरिस, 24. गांड़ा गांड़ी, 25. घासी, घसिया, 26. होलिया, 27. कंजर, 28. कतिया,पथरिय, 29. खटीक, 30. कोली, कोरी, 31. कनेरा,खंगार, मिरधा, 32. कुचबंधिया, 33. महार, मेहरा, मेहर, 34. मांग, मांगगरोड़ी, मांग गारुड़ी दंखनी मांग, मांग महाशी, मदारी, गारुड़ी, राधे मांग, 35. मेघवाल, 36. मोघिया, 37. मुसखान, 38. नट, कालबेलिया, सपेरा, नवदिगार, कुबुतर, 39. पासी, 40. रुज्झर, 41. सांसी, सांसिया, 42. सिलावट, 43. झमराल । छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजातियॉं
1. अगरिया, 2. आंध, 3. बैगा, 4. भैना, 5. भारिआ, भूमिआ, भुईहर भूमियॉं, भूमिआ, भारिया, पलिहा, पांडो, 6. भतरा, 7. भील, भिलाला, बरेला, पटलिया, 8. भील मीना, 9. भुंजिया, 10. बिअर, बिआर, 11. बिन्झवार, 12. बिरहुल बिरहोर, 13. डोमार, डमोर, डामरिया, 14. धनवार, 15. गदाबा गदबा, 16. गोड़, अरख, अगरिया, असुर बड़ी माड़िया, बड़ा मारिया, भटोला, भिमा, भूता, कोइलाभूता, कोइलाभूती, भार, विसानहार्न मारिया, छोटा मारिया, दंडामी मारिया, घुरु, धुरवा, धोवा, धूलिया, दोरला, नायकी, गट्टा, गट्टी, गैटा, गोंड गोवारी, हिल मारिया, कंडरा कलंगा, खटोला, कोईतर, कोया, खिरवार, खिरवारा, कुचा मारिया, कुचाकी मारिया, माड़िया, मारिया, माना, मन्नेवार, मोगिया, मोध्या, मुड़िया, मुरिया, नगारची, नागवंशी, ओझा, राज गोड़, सोनझारी, झरेका, थाटिया, थोट्या, बड़े माडिया, दरोई, 17. हल्वा, हल्वी, 18. कमार, 19. कारकू, 20. कवर, कंवर, कौर, चेरवा, राठिया, तंवर क्षत्री, 21. खैरवार, कोंदर, 22. खरिया, 23. कौंध, खोंड कांध, 24. कोल, 25. कोलम, 26. कोरकू, बोंचपी, मवासी, निहाल, नाहुल, बॉधी बोंडेया, 27. कोरवा, काडाकूं, 28मांझी, 29. मझवार, 30. मवासी, 31. मुण्डा, 32. नागेसिया, नगासिया, 33. उरांव, धनका, धनगढ़, 34. पाव, 35. पारधान, पथारी, सरोती, 36. पारधी, बहेरिया, बहेलिया, चिता पारछी, लंगोली पारछी, फांस पारधी, शिकारी, टाकनकर, टाकिया ।
(1) बस्तर, दंतेवाड़, रायगढ़, जशपुर, सरगुजा तथा कोरबा जिले में (2) कोरबा, जिले के कटघोरा, पाली, करतला और कोरबा तहसील में (3) बिलासपुर जिले के बिलासपुर, पेंड्रा, कोटा और तखतपुर तहसील में (4) दुर्ग जिले की दुर्ग, पाटन, बालोद, गुंडरदेही, गुरु, डौंडी लोहारा और धमधा तहसील में (5) राजनांदगांव जिले के चौकी, मानपुर और मोहला राजस्व निरीक्षकों के क्षेत्रों में (6) महासमुन्द जिले के महासमुन्द, सराईपाली, और बसना तहसील में (7) रायपुर जिले के बिन्द्रानवागढ़, राजिम और देवभोग तहसील में (8) धमतरी जिले के धमतरी, कुरुद और सिहावा तहसील में । 37. परजा, 38. सहारिया, सेहरिया, सोसिया, सोर, 39. साओंता, सौंता, 40. सौर, 41. सावर, सवरा, 42. सौंर ।
विशेष निर्देश :- | (अ) | छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मान्य जाति के अलावा अन्य कोई जाति मान्य नहीं है । यदि कोई छात्र उक्त जाति के अलावा अन्य जाति का प्रमाण पत्र देगा तो वह मान्य नहीं होगा । उसे निर्धारित सम्पूर्ण शुल्क का भुगतान करना होगा । |
(ब) | अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों को जाति प्रमाण पत्र में इस सूची में अंकित जाति का सं.क्र. अंकित करना अनिवार्य है । | |
(स) | कलेक्टर (आदिम जाति कल्याण विभाग) रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुसार मुस्लिम धर्म मानने वाले व्यक्ति अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाती की श्रेणी में नहीं आते । केवल अनुसूचित जनजाति के वे व्यक्ति जो ईसाई धर्म अपना लिए हैं वह अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभ के हकदार हैं तथा अनुसूचित जाति के जो भी व्यक्ति बौद्ध धर्म अपना लिए वे पिछड़ा जाति को मिलने वाले लाभों के हकदार हैं । |
अछूत गाँव के बाहर क्यों रहते हैं?
अछूत गाँव के बाहर क्यों रहते हैं?
स्वाभाविक तौर पर इस बारे में किसी का कुछ सिद्धान्त नहीं है कि अछूत गाँव से बाहर क्यों रहने लगे। यह तो हिन्दू शास्त्रों का मत है और यदि कोई इसे सिद्धान्त मान कर उचित कहे तो वह कह सकता है। शास्त्रों का मत है कि अंत्यजो को गाँव के बाहर रहना चाहिये;
मनु का कथन है;
१०.५१. चाण्डालों और खपचों का निवास गाँव से बाहर हो। उन्हे अपपात्र बनाया जाय । उनका धन कुत्ते और गधे हों।
१०.५२. मुर्दों के उतरन उनके वस्त्र हों, वे टूटे बरतनों में भोजन करें। उनके गहने काले लोहे के हों और वे सदैव जगह जगह घूमते रहें।
इस कथन के दो अर्थ लिये जा सकते हैं..
१. अछूत हमेशा से गाँव के बाहर रहते आये और अस्पृश्यता के कलंक के बाद उनका गाँव में आना निषिद्ध हो गया।
२. वे मूलतः गाँव के अन्दर रहते थे पर अस्पृश्यता का कलंक लगने के बाद उन्हे गाँव से बाहर किया गया।
दूसरी सम्भावना बेसिर पैर की कल्पना ही है क्योंकि पूरे भारत वर्ष में गाँव के भीतर बस रहे अछूतों को निकालकर गाँव के बाहर बसाना लगभग असंभव कार्य लगता है। यदि संभव होता भी तो इसके लिये किसी चक्रवर्ती राजा की ज़रूरत होती, और भारत में ऐसा कोई चक्रवर्ती राजा नहीं हुआ। तो इस दूसरी सम्भावना को छोड़ देने पर इस बात पर विचार किया जाय कि अछूत शुरु से ही गाँव के बाहर क्यों रहते थे।
आदिम समाज रक्त सम्बन्ध पर आधारित कबायली समूह था मगर वर्तमान समाज नस्लों के समूह में बदल चुका है। साथ ही साथ आदिम समाज खानाबदोश जातियों का बना था और वर्तमान समाज एक जगह बनी बस्तियों का समूह है। इस यात्रा में ही हमारे प्रश्न का उत्तर है।
आदिम लोग पशुपालन करते और अपने पशुओ को लेकर कहीं भी चले जाते। ये बात भी याद रहे कि ये कबीले और जातियां पशुओं की चोरी और स्त्रियों के हरण के लिये आपस में अक्सर युद्ध करते रहते। इन युद्धों दौरान जो दल परास्त होता वह टुकड़े टुकड़े हो जाता और इस तरह परास्त हुए लोग छितरे बिखरे हो कर इधर उधर घूमते रहते। आदिम समाज में हर व्यक्ति का अस्तित्त्व अपने कबीले से हो कर ही होता था, कोई भी व्यक्ति जो एक कबीले में पैदा हुआ हो वह दूसरे कबीले में शामिल नहीं हो सकता था। तो इस तरह से छितरे व्यक्ति (broken man) एक गहरी समस्या के शिकार थे।
आदिम मानव को जब एक नई संपदा- भूमि का पता चला तो उनका जीवन धीरे धीरे स्थिर हो गया। पर सभी घुमन्तु कबीले और जातियां एक ही समय पर स्थिर नहीं हुए। कुछ स्थिर हो गये और कुछ घुमन्तु बने रहे। तब घुमन्तु लोगों को बसे हुए लोगों की सम्पत्ति देख कर लालच होता और वे उन पर हमला करते। जबकि बसे हुए लोग, अपना घर बार छोड़कर इन घुमन्तुओ का पीछा करना और मारकाट करना नहीं चाहते थे, और वे अपनी रक्षा में कमज़ोर हो गए थे। उन्हे कोई ऐसे लोग चाहिये थे जो घुमन्तुओं के आक्रमण में उनकी पहरेदारी करें। दूसरी तरफ़ छितरे लोगों की समस्या थी कि उन्हे ऐसे लोग चाहिये थे जो उन्हे शरण और संरक्षण दे।
इन दोनों समूहों ने अपनी समस्या को कैसे सुलझाया इसका हमारे पास कोई दस्तावेज़ कोई प्रमाण नहीं है। जो भी समझौता हुआ होगा उसमें दो बाते ज़रूर विचारणीय होगीं- एक तो रक्त सम्बन्ध और दूसरी युद्ध नीति। आदिम मान्यता के अनुसार रक्त सम्बन्धी ही एक साथ रह सकते हैं और युद्ध नीति के अनुसार पहरेदार को चाहिये कि वह सीमाओं पर रहें।
पर इस बात का क्या कोई ठोस प्रमाण है कि अछूत छितरे हुए व्यक्ति ही हैं?
क्या अछूत छितरे व्यक्ति हैं?
मेरा उत्तर है "हाँ"। गाँव में बसने वाली जाति और अछूतों की गण देवों की भिन्न्ता ही इसका सर्वश्रेष्ठ प्रमाण होगी पर इस तरह का अध्ययन अनुपलब्ध है।
भाषा का सहारा लेकर देखें तो अछूतों को दिए गये नाम, अन्त्य, अन्त्यज अन्त्यवासिन, अंत धातु से निकले हैं। हिन्दू पण्डितों का कहना है इन शब्दों का अर्थ अंत में पदा हुआ है मगर यह तर्क बेहूदा है क्योंकि अंत में तो शूद्र पैदा हुए हैं। जबकि अछूत तो ब्रह्मा की सृष्टि रचना से बाहर का प्राणी है। शूद्र सवर्ण है जबकि अछूत अवर्ण है। मेरी समझ में अन्त्यज का अर्थ सृष्टि क्रम का अंत नहीं, गाँव का अंत है। यह एक नाम है जो गाँव की सीमा पर रहने वाले लोगों को दिया गया।
दूसरा तथ्य महाराष्ट्र की सबसे बड़ी अछूत जाति महारो से सम्बन्धित है। इनके बारे में ध्यान देने योग्य है कि..
१. महाराष्ट्र के हर गाँव के गिर्द एक दीवार रहती है और महार उस दीवार के बाहर रहते हैं।
२. महार बारी बारी से गाँव की पहरेदारी करते हैं
३. महार हिन्दू गाँव वासियों के विरुद्ध अपने ५२ अधिकारों का दावा करते हैं जिनमें मुख्य हैं;
अ. गाँव के लोगों से खाना इकट्ठा करने का अधिकार
ब. फ़सल के समय हर गाँव से अनाज इकट्ठा करने का अधिकार
स. गाँव के मरे हुए पशुओ पर अधिकार
अनुश्रुति है कि ये अधिकार महारों को बरार के मुस्लिम राजाओं से प्राप्त हुए । इसका मतलब इतना ही हो सकता है कि इन प्राचीन अधिकारों को बरार के राजा ने नए सिरे से मान्यता दी।
ये तथ्य बहुत मामूली हैं फिर भी इतना तो प्रमाणित करते हैं कि अछूत आरंभ से ही गाँव से बाहर रहते आए हैं।
स्वाभाविक तौर पर इस बारे में किसी का कुछ सिद्धान्त नहीं है कि अछूत गाँव से बाहर क्यों रहने लगे। यह तो हिन्दू शास्त्रों का मत है और यदि कोई इसे सिद्धान्त मान कर उचित कहे तो वह कह सकता है। शास्त्रों का मत है कि अंत्यजो को गाँव के बाहर रहना चाहिये;
मनु का कथन है;
१०.५१. चाण्डालों और खपचों का निवास गाँव से बाहर हो। उन्हे अपपात्र बनाया जाय । उनका धन कुत्ते और गधे हों।
१०.५२. मुर्दों के उतरन उनके वस्त्र हों, वे टूटे बरतनों में भोजन करें। उनके गहने काले लोहे के हों और वे सदैव जगह जगह घूमते रहें।
इस कथन के दो अर्थ लिये जा सकते हैं..
१. अछूत हमेशा से गाँव के बाहर रहते आये और अस्पृश्यता के कलंक के बाद उनका गाँव में आना निषिद्ध हो गया।
२. वे मूलतः गाँव के अन्दर रहते थे पर अस्पृश्यता का कलंक लगने के बाद उन्हे गाँव से बाहर किया गया।
दूसरी सम्भावना बेसिर पैर की कल्पना ही है क्योंकि पूरे भारत वर्ष में गाँव के भीतर बस रहे अछूतों को निकालकर गाँव के बाहर बसाना लगभग असंभव कार्य लगता है। यदि संभव होता भी तो इसके लिये किसी चक्रवर्ती राजा की ज़रूरत होती, और भारत में ऐसा कोई चक्रवर्ती राजा नहीं हुआ। तो इस दूसरी सम्भावना को छोड़ देने पर इस बात पर विचार किया जाय कि अछूत शुरु से ही गाँव के बाहर क्यों रहते थे।
आदिम समाज रक्त सम्बन्ध पर आधारित कबायली समूह था मगर वर्तमान समाज नस्लों के समूह में बदल चुका है। साथ ही साथ आदिम समाज खानाबदोश जातियों का बना था और वर्तमान समाज एक जगह बनी बस्तियों का समूह है। इस यात्रा में ही हमारे प्रश्न का उत्तर है।
आदिम लोग पशुपालन करते और अपने पशुओ को लेकर कहीं भी चले जाते। ये बात भी याद रहे कि ये कबीले और जातियां पशुओं की चोरी और स्त्रियों के हरण के लिये आपस में अक्सर युद्ध करते रहते। इन युद्धों दौरान जो दल परास्त होता वह टुकड़े टुकड़े हो जाता और इस तरह परास्त हुए लोग छितरे बिखरे हो कर इधर उधर घूमते रहते। आदिम समाज में हर व्यक्ति का अस्तित्त्व अपने कबीले से हो कर ही होता था, कोई भी व्यक्ति जो एक कबीले में पैदा हुआ हो वह दूसरे कबीले में शामिल नहीं हो सकता था। तो इस तरह से छितरे व्यक्ति (broken man) एक गहरी समस्या के शिकार थे।
आदिम मानव को जब एक नई संपदा- भूमि का पता चला तो उनका जीवन धीरे धीरे स्थिर हो गया। पर सभी घुमन्तु कबीले और जातियां एक ही समय पर स्थिर नहीं हुए। कुछ स्थिर हो गये और कुछ घुमन्तु बने रहे। तब घुमन्तु लोगों को बसे हुए लोगों की सम्पत्ति देख कर लालच होता और वे उन पर हमला करते। जबकि बसे हुए लोग, अपना घर बार छोड़कर इन घुमन्तुओ का पीछा करना और मारकाट करना नहीं चाहते थे, और वे अपनी रक्षा में कमज़ोर हो गए थे। उन्हे कोई ऐसे लोग चाहिये थे जो घुमन्तुओं के आक्रमण में उनकी पहरेदारी करें। दूसरी तरफ़ छितरे लोगों की समस्या थी कि उन्हे ऐसे लोग चाहिये थे जो उन्हे शरण और संरक्षण दे।
इन दोनों समूहों ने अपनी समस्या को कैसे सुलझाया इसका हमारे पास कोई दस्तावेज़ कोई प्रमाण नहीं है। जो भी समझौता हुआ होगा उसमें दो बाते ज़रूर विचारणीय होगीं- एक तो रक्त सम्बन्ध और दूसरी युद्ध नीति। आदिम मान्यता के अनुसार रक्त सम्बन्धी ही एक साथ रह सकते हैं और युद्ध नीति के अनुसार पहरेदार को चाहिये कि वह सीमाओं पर रहें।
पर इस बात का क्या कोई ठोस प्रमाण है कि अछूत छितरे हुए व्यक्ति ही हैं?
क्या अछूत छितरे व्यक्ति हैं?
मेरा उत्तर है "हाँ"। गाँव में बसने वाली जाति और अछूतों की गण देवों की भिन्न्ता ही इसका सर्वश्रेष्ठ प्रमाण होगी पर इस तरह का अध्ययन अनुपलब्ध है।
भाषा का सहारा लेकर देखें तो अछूतों को दिए गये नाम, अन्त्य, अन्त्यज अन्त्यवासिन, अंत धातु से निकले हैं। हिन्दू पण्डितों का कहना है इन शब्दों का अर्थ अंत में पदा हुआ है मगर यह तर्क बेहूदा है क्योंकि अंत में तो शूद्र पैदा हुए हैं। जबकि अछूत तो ब्रह्मा की सृष्टि रचना से बाहर का प्राणी है। शूद्र सवर्ण है जबकि अछूत अवर्ण है। मेरी समझ में अन्त्यज का अर्थ सृष्टि क्रम का अंत नहीं, गाँव का अंत है। यह एक नाम है जो गाँव की सीमा पर रहने वाले लोगों को दिया गया।
दूसरा तथ्य महाराष्ट्र की सबसे बड़ी अछूत जाति महारो से सम्बन्धित है। इनके बारे में ध्यान देने योग्य है कि..
१. महाराष्ट्र के हर गाँव के गिर्द एक दीवार रहती है और महार उस दीवार के बाहर रहते हैं।
२. महार बारी बारी से गाँव की पहरेदारी करते हैं
३. महार हिन्दू गाँव वासियों के विरुद्ध अपने ५२ अधिकारों का दावा करते हैं जिनमें मुख्य हैं;
अ. गाँव के लोगों से खाना इकट्ठा करने का अधिकार
ब. फ़सल के समय हर गाँव से अनाज इकट्ठा करने का अधिकार
स. गाँव के मरे हुए पशुओ पर अधिकार
अनुश्रुति है कि ये अधिकार महारों को बरार के मुस्लिम राजाओं से प्राप्त हुए । इसका मतलब इतना ही हो सकता है कि इन प्राचीन अधिकारों को बरार के राजा ने नए सिरे से मान्यता दी।
ये तथ्य बहुत मामूली हैं फिर भी इतना तो प्रमाणित करते हैं कि अछूत आरंभ से ही गाँव से बाहर रहते आए हैं।
महाहर
- Ashish yadav on July 18, 2010 at 3:35pm
- पहले तो मै 'रवि कुमार गिरी जी' को प्रणाम करता हूँ की उन्होंने इतनी अच्छी बात शुरू की. अब मै भगवान् भोलेनाथ का नाम लेकर उन्ही के बारे में बता रहा हु. गाजीपुर जिले में एक गाजीपुर-मऊ संपर्क मार्ग पर एक स्थान है मरदह. मरदह से पूरब की तरफ करीब ४ या ५ कि० मि० की दुरी पर स्थान है महाहर. वैसे तो इस स्थान को वहा के स्थानीय लोग महारे या महार कह कर पुकारते है. वही महाहर में भगवान् भोलेनाथ का मंदिर है जो पुरे गाजीपुर में प्रसिद्द है. वहा पे इस मंदिर के अलावा भी कई देवी और देवताओ के मंदिर हैं, जैसे भगवान् कृष्ण, माता दुर्गा, राम जी, भैरव बाबा, कुल १५वो मंदिर है. लेकिन सबसे आस्थावान मंदिर भगवान भोले का ही है. अपने कन्धों पे रख कर अपने माता-पिता को सभी तीर्थों की सैर कराने वाले श्रवन कुमार को दसरथ जी ने यही पे मारा था. कहा जाता है की यहाँ पे बहुत सारा सोना चाँदी गाड़ा गया है. कई बार कई लोगो ने यहाँ पे खुदाई करवाने का प्रयास किया लेकिन उनके घर कोई न कोई अशुभ घटना घट गई. सावन के महीने में यहाँ पे बहुत दूर दूर से लोग आते है. वैसे तो तो हर सोमवार को काफी भीड़ रहती है किन्तु सावन के प्रत्येक सोमवार को यहाँ पे हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु आते है. यहाँ पर महाशिवरात्रि के दिन मेला लगता है जो करीब ३ दिनों तक चलता है. और भी बाते है इसके सम बांध में जो फिर कभी जिक्र करूँगा. हर हर महादेव जय शिव शंकर
महार हा गावाचा हरकाम्या. तो ओरडून दवंडी देई
महार हा गावाचा हरकाम्या. तो ओरडून दवंडी देई. प्रेताचे सरण वाही. जागल्या म्हणजे पहारेकरी. हा बहुदा महार जातीचा. गावराखण करणाऱ्या महाराला चारी सीमा बारकाईने माहित. म्हणून जमीन जुमला, घरदार या स्थावरांच्या वादात त्याची साक्ष महत्वाची. वेसकर या महाराने वेशीचे दरवाजे रात्री बंद करुन सकाळी उघडायचे.
कुसू म्हणजे गावाभोवतीची संरक्षक भिंत. वेस म्हणजे त्या भिंतीमधला प्रवेश दरवाजा. स्पृश्यांची घरे गावकुसाच्या आत. अस्पृश्य, भटक्या जमाती, नव्याने वस्तीला आलेल्या जंगली जाती याची घरे, पाले, झोपड्या गावकुसाबाहेर. चांभार, भंगी गोमांस न खाणारी मंडळी गावकुसाला चिकटून तर महारवाडा, मांगवाडा दूर. या जाती ‘पड’ म्हणजे मेलेली गुरे खातात म्हणून त्यांच्याशी दुरावा. गावाला पश्चिमेचा वारा शुध्द मिळावा म्हणून महार व मांगवाडे पूर्वेला. चाभारगोंदे ऊर्फ श्रीगोंदे येथे मात्र परंपरेने चांभारवाडा मध्यवस्तीत असे. स्पृश्य आणि अस्पृश्य दोन्ही वस्त्यांमधे घरे जातवार गटाने असत. त्यांना जातवार नावे. सुतार आळी, माळी आळी, रामोशीवाडी, भिलाटी इत्यादि. असो.
प्रवाशांचे सामान उचलणारा महार तो तराळ. करवसुलीसाठी शेतकऱ्यांना बोलावून आणणारा तो महारच. होळी पेटवायची ती महाराने. देवीची शांत करण्यासाठी रेडा बळी द्यायचा तो महाराने. रस्ते सफाई, मेलेली गुरे ओढून नेणे ही सुध्दा महाराची कामे. त्या गुरांची चामडी महारानेच घ्यायची. महारांची कामे लोकांनी पाळीपाळीने करायची असत. कामांबद्दल महारांना कसायला थोडी जमीन मिळे. तिला नाव हाडकी. घरपट्टी, गुरेपट्टी महारांना माफ. महारांची लग्न सराई आषाढात. का तर त्या महिन्यात सवर्णांची लग्ने होत नाहीत म्हणून महारांना जरा सवड असते. महार हा पाटलाचा “प्यून” . पण पाटलाची गादी गावचावडी आणि महाराला चावडीची पायरी चढता येत नाही म्हणून तेथे पाटलाची सेवा करण्यासाठी चौगुला हा पाटलाच्या जातीचा माणूसः
चावडीत दिवा बत्ती, पाणी भरणे ही कामे भोयांची. देवळाची झाडलोट, पूजा, तेलवात ही कामे गुरवांची. दसरा, शमीपूजन, तुळशीचे लग्न या दिवशी पाने, फुले, फळे थोरामोठ्यांच्या घरी नेऊन देणे, लग्नाची आमंत्रणे वाटणे, गावजेवणाच्या पत्रावळी लावणे ही कामे सुध्दा गुरवाने करायची. लग्नात शेला, जेवण हे त्यांच्या हक्काचे. गावात देवाची कामे करणारे वेगवेगळे लोक असू शकतात. गुरव हा गावदेवीचा पुजारी. भगत हा भूत काढून टाकणारा. खंडोबाचा पुजारी वाघ्या तर लिंगायतांचा पुजारी जंगम.
बलुतेदार हे गावाचे वतनदार. वतन म्हणजे पदाचे पिढीजात हक्क. बलुतेदारांना मजुरी नाही. पिकात हिस्सा, समारंभात मानपान, थोडीबहुत बिनखंडाने जमीन, घराला जागा. म्हणजेच जगण्याची व्यवस्था. पण मजुरी नाही.
गावाचा राज्यकर्त्यांशी संबंध बेताचाच असे. कर दिला म्हणजे झाले. सरकारने गावासाठी काही करावे अशी अपेक्षा नसे. अत्याचार केले नाहीत म्हणजे झाले. पाटील कर गोळा करे. महार सगळ्या शेतकऱ्यांना बोलावून आणे. ते धान्य देत
कुसू म्हणजे गावाभोवतीची संरक्षक भिंत. वेस म्हणजे त्या भिंतीमधला प्रवेश दरवाजा. स्पृश्यांची घरे गावकुसाच्या आत. अस्पृश्य, भटक्या जमाती, नव्याने वस्तीला आलेल्या जंगली जाती याची घरे, पाले, झोपड्या गावकुसाबाहेर. चांभार, भंगी गोमांस न खाणारी मंडळी गावकुसाला चिकटून तर महारवाडा, मांगवाडा दूर. या जाती ‘पड’ म्हणजे मेलेली गुरे खातात म्हणून त्यांच्याशी दुरावा. गावाला पश्चिमेचा वारा शुध्द मिळावा म्हणून महार व मांगवाडे पूर्वेला. चाभारगोंदे ऊर्फ श्रीगोंदे येथे मात्र परंपरेने चांभारवाडा मध्यवस्तीत असे. स्पृश्य आणि अस्पृश्य दोन्ही वस्त्यांमधे घरे जातवार गटाने असत. त्यांना जातवार नावे. सुतार आळी, माळी आळी, रामोशीवाडी, भिलाटी इत्यादि. असो.
प्रवाशांचे सामान उचलणारा महार तो तराळ. करवसुलीसाठी शेतकऱ्यांना बोलावून आणणारा तो महारच. होळी पेटवायची ती महाराने. देवीची शांत करण्यासाठी रेडा बळी द्यायचा तो महाराने. रस्ते सफाई, मेलेली गुरे ओढून नेणे ही सुध्दा महाराची कामे. त्या गुरांची चामडी महारानेच घ्यायची. महारांची कामे लोकांनी पाळीपाळीने करायची असत. कामांबद्दल महारांना कसायला थोडी जमीन मिळे. तिला नाव हाडकी. घरपट्टी, गुरेपट्टी महारांना माफ. महारांची लग्न सराई आषाढात. का तर त्या महिन्यात सवर्णांची लग्ने होत नाहीत म्हणून महारांना जरा सवड असते. महार हा पाटलाचा “प्यून” . पण पाटलाची गादी गावचावडी आणि महाराला चावडीची पायरी चढता येत नाही म्हणून तेथे पाटलाची सेवा करण्यासाठी चौगुला हा पाटलाच्या जातीचा माणूसः
चावडीत दिवा बत्ती, पाणी भरणे ही कामे भोयांची. देवळाची झाडलोट, पूजा, तेलवात ही कामे गुरवांची. दसरा, शमीपूजन, तुळशीचे लग्न या दिवशी पाने, फुले, फळे थोरामोठ्यांच्या घरी नेऊन देणे, लग्नाची आमंत्रणे वाटणे, गावजेवणाच्या पत्रावळी लावणे ही कामे सुध्दा गुरवाने करायची. लग्नात शेला, जेवण हे त्यांच्या हक्काचे. गावात देवाची कामे करणारे वेगवेगळे लोक असू शकतात. गुरव हा गावदेवीचा पुजारी. भगत हा भूत काढून टाकणारा. खंडोबाचा पुजारी वाघ्या तर लिंगायतांचा पुजारी जंगम.
बलुतेदार हे गावाचे वतनदार. वतन म्हणजे पदाचे पिढीजात हक्क. बलुतेदारांना मजुरी नाही. पिकात हिस्सा, समारंभात मानपान, थोडीबहुत बिनखंडाने जमीन, घराला जागा. म्हणजेच जगण्याची व्यवस्था. पण मजुरी नाही.
गावाचा राज्यकर्त्यांशी संबंध बेताचाच असे. कर दिला म्हणजे झाले. सरकारने गावासाठी काही करावे अशी अपेक्षा नसे. अत्याचार केले नाहीत म्हणजे झाले. पाटील कर गोळा करे. महार सगळ्या शेतकऱ्यांना बोलावून आणे. ते धान्य देत
महार: हमेशा सबसे आगे
महार: हमेशा सबसे आगे | |
The Mahars' participation in the Battle of Koregaon on January 1, 1818 is the most famous and also the best documented action involving Mahar soldiers. युद्ध 1818, जनवरी 1 कोरेगांव में महार भागीदारी सैनिकों है सबसे प्रसिद्ध और भी बेहतरीन महार शामिल प्रलेखित कार्रवाई की. In addition to army units on land, the Mahars formed a vital component of the Bombay Army's Marine Battalion too. पर सेना की इकाइयों को भूमि के अलावा, महार भी सेना समुद्री बम्बई का गठन एक महत्वपूर्ण घटक के बटालियन. In the wake of the 1857 mutiny and threats from Russia, the British re-examined their recruitment policies and Mahars became a casualty of this new thinking when the British ceased recruiting them in 1893. रूस में और खतरों से जगाने की 1857 के गदर, ब्रिटिश पुनः-महार उनकी जांच की भर्ती की नीतियों और सोच के इस नए बने एक हताहत जब ब्रिटिश 1893 में उन्हें भर्ती बंद. Again, between two wars, the Mahars persistently sought a regiment for themselves. फिर, युद्ध के बीच दो, महार रेजीमेंट persistently खुद के लिए एक मांग की. These efforts resulted in a Mahar Regiment being raised in 1941. इन प्रयासों के परिणामस्वरूप 1941 में एक महार रेजिमेंट उठाया जा रहा है. The first battalion of the Mahar Regiment was raised at Nanawadi (Belgaum) on October 1, 1941. Subsequently, the Centre, Second and the Third Battalions were also raised. महार रेजिमेंट की पहली बटालियन 1941 (पर उठाया था Nanawadi 1) बेलगाम अक्तूबर बाद. केंद्र, द्वितीय और तृतीय बटालियन भी उठाए गए थे. The Training Centre was initially raised as Training Company at Kamptee on October 1, 1942 and later expanded to form the Mahar Training Battalion in June 1943. ट्रेनिंग सैंटर 1943 था जून में 1 के रूप में उठाया पर शुरू में कंपनी के प्रशिक्षण में कैम्पटी अक्टूबर, 1942 बटालियन के प्रशिक्षण के लिए फार्म का महार का विस्तार किया और बाद में. It was once again renamed as the Mahar Machinegun Regimental Centre from October 1, 1946 when it was converted in a specialist role of fielding medium machineguns, and for a decade and a half rendered most effective support in combat. यह मध्यम machineguns था 1 अक्टूबर machinegun महार रेजिमेंट सेंटर से एक बार फिर नाम के रूप में, 1946 क्षेत्ररक्षण की भूमिका में एक विशेषज्ञ परिवर्तित कर दिया गया जब यह, और एक दशक के लिए एक और एक आधे से निपटने के प्रभावी समर्थन में सबसे गाया. The medium machinegun detachments were most warmly welcomed in every infantry battalion, for their skills and competent fire support in combat. मध्यम machinegun टुकड़ी बटालियन थे पैदल सेना हर में सबसे अधिक गरमी से स्वागत किया, से निपटने के लिए अपने कौशल आग समर्थन में सक्षम और. In 1956, the Regiment absorbed three battalions of the Border Scouts earlier raised for manning the disturbed Punjab border. 1956 में, रेजिमेंट सीमा सीमा के अवशोषित तीन बटालियनों स्काउट्स पंजाब परेशान मैनिंग के लिए पहले भी उठाया. The period from 1959 to 1962 saw four more battalions being raised in the regiment as machinegunners. After 17 years of renowned service and pristine glory, Mahar Machinegun Regiment in 1963 was reconverted to a standard Infantry Regiment and was sent back to its original role for which it was raised in 1941. से 1962 की अवधि के लिए 1959 देखा चार और बटालियनों machinegunners रेजिमेंट के रूप में उठाया जा रहा भूमिका में सेवा रेजिमेंट प्रसिद्ध. के बाद 17 वर्ष की महिमा, महार machinegun प्राचीन इन्फैन्ट्री और मानक एक था 1963 के लिए reconverted रेजिमेंट और इसके मूल वापस करने के लिए भेजा गया था जिसके लिए यह 1941 में उठाया गया था. The Regiment as well as the battalions were renamed as the Mahar Regiment except for 4th, 5th and 6th battalions which were designated as battalions of the Mahar Regiment (Borders). रेजिमेंट के रूप में अच्छी तरह के रूप बटालियनों) बॉर्डर्स थे नाम के रूप में (महार रेजिमेंट को छोड़कर के लिए 4, 5 और महार रेजिमेंट की बटालियन 6 बटालियनों थे जो निर्दिष्ट के रूप में. The class composition of the Regiment also changed. रेजिमेंट की संरचना वर्ग भी बदल दिया है. While 1st, 2nd, 3rd, 7th, 8th and 13th battalions were all pure Mahar battalions, the others were mixed classes right down to the smallest sub-unit level. जबकि 1, 2, 3, 7, 8 और 13 बटालियनों बटालियन महार थे सभी शुद्ध, दूसरों के स्तर की सबसे छोटी इकाई के उप थे मिश्रित कक्षाएं ठीक नीचे करने के लिए. The conversion training started in November 1963 with 1st Mahar and completed in May 1964 with 10th Mahar. रूपांतरण प्रशिक्षण महार के साथ 1 नवंबर 1963 में शुरू किया और 10 वीं महार के साथ मई 1964 में पूरा किया. The year 1965 saw all the battalions of the regiment gearing up for operations. वर्ष 1965 देखा अप के लिए तैयार सभी आपरेशनों रेजीमेंट की बटालियनों. These included the newly raised 11th and 12th battalions that had the unique composition of Bengalis, Oriyas and Gujratis - the communities that had been stamped as non-martial by the British. इन ब्रिटिश शामिल उठाया और नव 11 वीं, 12 वीं बटालियन बंगालियों, Oriyas की थी अद्वितीय संरचना और Gujratis - टिकट लगा दिया गया द्वारा मार्शल के रूप में गैर था समुदायों कि. Their entry into the Mahar fraternity added strength to national integration-the distinctive feature which the regiment has always been proud of. महार बिरादरी में उनके प्रवेश पर गर्व जोड़ा शक्ति के लिए राष्ट्रीय एकीकरण-विशिष्ट विशेषता है जो हमेशा रेजिमेंट. In 1966, the Regiment gained two new battalions in its fold- the 13th and the 108 Infantry Battalion (Territorial Army). 1966 में, रेजिमेंट 13 गुना अपने कमाए दो नई बटालियनों में और 108 इंफैंट्री बटालियन (प्रादेशिक सेना). The TA battalion which was initially affiliated to Rajputana Rifles was re-organised by interchanging and conversion of personnel between this battalion and the 227th Air Defence Regiment Territorial Army. प्रादेशिक सेना बटालियन जो राजपूताना राइफल्स था शुरू संबद्ध पुनः था प्रादेशिक सेना रेजिमेंट 227 वायु रक्षा और संगठित द्वारा interchanging और रूपांतरण के कर्मियों के बीच इस बटालियन. The Regiment acquired its 14th battalion originally called the 31st battalion in 1968. Belonging to a new series, known as the Thirty Series , raised for counter-insurgency role in Nagaland and Mizo Hills, it was specially trained and equipped for aid to civil power. रेजिमेंट बटालियन का अधिग्रहण अपनी 14 वीं बटालियन मूलतः बुलाया, 1968 31 नागरिक सत्ता के लिए. संबंधित करने के लिए एक नई श्रृंखला के रूप में जाना, नगालैंड में उग्रवाद विरोधी भूमिका के लिए तीस सीरीज, उठाया और मिजो हिल्स था यह, सहायता के लिए सुसज्जित है और विशेष रूप से प्रशिक्षित किया. This year was also special in the sense that the Regiment was sanctioned special items of dress including a hackle in recognition of its distinguished services rendered with unfailing consistency. इस साल अर्थ था में भी खास है कि रेजिमेंट स्थिरता अमोघ गाया के साथ अपनी विशिष्ट सेवाओं सहित एक कपड़ा के आइटम था मंजूर विशेष की मान्यता में मछली का चारा. The distinctive part of the uniform included a dull cherry hackle, flash backing for soldier titles and badges of rank, white spats and a leather belt with regimental crest on metal buckle. वर्दी के भाग के विशिष्ट बकसुआ शामिल एक चेरी सुस्त धातु मछली का चारा पर शिखा, फ्लैश समर्थन के खिताब के लिए सैनिक और बैज के पद बेल्ट के साथ रेजिमेंटल चमड़े और एक झगड़े, सफेद. A month prior to the presentation of Colours to the Regimental Centre and 1st to 14th battalions, the Regiment saw the raising of 15th battalion, originally the 32nd battalion in the Thirty Series . बटालियनों रेजिमेंटल 14 1 करने के लिए और केंद्र के लिए एक महीने से पहले ध्वज प्रस्तुति की, रेजिमेंट बटालियन के 15 वें स्थापना देखा, मूल तीस सीरीज में 32 वीं बटालियन. It was for the first time that a battalion of the Regiment was composed entirely of hill tribes. यह पहाड़ी जनजातियों था के लिए पहली बटालियन का एक समय है कि पूरी तरह से बना था रेजिमेंट. And after the Colours, the Regiment saw the new flag in 1975 while the 8th battalion of the Parachute Regiment too was converted and re- designated as the l6th battalion of the Regiment. और ध्वज के बाद, रेजिमेंट 1975 में नया झंडा देखा जबकि पैराशूट रेजिमेंट की 8 वीं बटालियन भी परिवर्तित किया गया और फिर से रेजिमेंट l6th बटालियन के रूप में नामित है. Later the same year, it was re-converted into Mechanised Infantry Battalion- the first and the only mechanised battalion of the Regiment. बाद में उसी वर्ष, यह पुनः था रेजिमेंट में परिवर्तित मैकेनाइज्ड इंफेंट्री बटालियन को पहला और बटालियन के यंत्रीकृत ही. The late 70s and early 80s saw देर 70s और जल्दी 80 देखा three more additions to the Mahar family - the 17th, 18th and 19th battalions. तीन महार परिवार और परिवर्धन के लिए - 17, 18 और 19 बटालियनों. This period was historic as Gen KV Krishna Rao took over as Chief of Army Staff of the Indian Army, 17th and 18th battalions were presented the Colours, a इस अवधि में, ध्वज था ऐतिहासिक रूप जनरल प्रस्तुत किए गए भारतीय बटालियनों के ऊपर के रूप में लिया केवी कृष्णा राव चीफ आर्मी स्टाफ के 18 और सेना, 17 एक regimental history authored by Col V Longer was released, a special issue dedicated to the Regiment was published by Sainik Samachar and the Postal Department paid tribute to the Regiment by releasing a commemorative First Day Cover, a postal stamp and a special cancellation cachet. रेजिमेंट जारी कर इतिहास लेखक कर्नल वी लंबा था, एक विशेष रेजीमेंट के मुद्दे समर्पित डाक विभाग द्वारा प्रकाशित किया गया था सैनिक समाचार और मुहर रद्द विशेष और एक डाक टिकट डाक के लिए भुगतान किया श्रद्धांजलि रेजिमेंट द्वारा जारी एक स्मारक प्रथम दिवस आवरण, एक. The Mahars proved their mettle in the UN missions in Congo and Somalia and in operations Polo, Pawan, Meghdoot and Vijay . महार संचालन और सोमालिया में कांगो में और मिशन अपनी क्षमताएं साबित में संयुक्त राष्ट्र पोलो, पवन, मेघदूत और विजय. The Regimental Centre moved from Kamptee to Arangaon (near Ahmednagar) in 1946 and later found its permanent home in Saugor in December 1948. रेजिमेंटल सेंटर अहमदनगर से स्थानांतरित पूंजी (Arangaon को कैम्पटी) 1946 में और बाद में 1948 में दिसंबर Saugor घर में स्थायी अपनी पाया. |
आंध्र प्रदेश के समुदाय पर माला एक संक्षिप्त नोट
आंध्र प्रदेश के समुदाय पर माला एक संक्षिप्त नोट by v ramchandra rao v द्वारा रामचंद्र राव
The Malas are a large geographically dispersed community found in Andhra Pradesh and several other states of India. Malas एक बड़े भौगोलिक दृष्टि से छितरी हुई है आंध्र प्रदेश और भारत के कई अन्य राज्यों में पाया समुदाय के हैं. Since last few centuries due to various reasons ( discussed later) they are considered to be of low social status, but that hasn't stopped them from rising to the occasion now and then. के बाद से विभिन्न कारणों की वजह से (बाद में) पर चर्चा वे कम सामाजिक स्थिति की हो, लेकिन माना जाता है कि उन्हें अवसर अब बढ़ती से नहीं रोका है और फिर पिछले कुछ सदियों से. They are technically "scheduled castes" or "ex-untouchables" but in reality they are a key part of the rural scene, being agricultural workers, and appointed in bygone days as village servants and village watchmen . वे तकनीकी रूप से कर रहे हैं "अनुसूचित" जातियों या पूर्व अछूतों लेकिन वास्तविकता में, वे ग्रामीण दृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा किया जा रहा है कृषि मजदूरों, कर्मचारियों और गांव और गांव के चौकीदार के रूप में बीते दिनों में नियुक्त किया. The upper crust of the Malas in cities are taking to education in a big way and rapidly modernising. शहरों में Malas की ऊपरी परत को एक बड़े पैमाने पर शिक्षा के लिए ले जा रहे हैं और तेजी से आधुनिकीकरण. (Actually in andhra pradesh many of these urban Malas ought to be considered BC not SC if social indicators are any index). (आंध्र इन शहरी Malas के कई प्रदेश में असल चाहिए ईसा पूर्व माना जाता अनुसूचित जाति के लिए नहीं है अगर सामाजिक संकेतकों के किसी भी सूचकांक हैं).
As far as I know, among Malas apart from farmworkers there is only a small occupational subcaste, that of Mala weavers. जहाँ तक मुझे पता है, के बीच में Malas farmworkers अलावा वहाँ सिर्फ एक छोटी सी व्यावसायिक subcaste है, माला बुनकरों की. They dont seem to have any artisanal speciality otherwise. वे न किसी artisanal अन्यथा विशेषता है लगता है. The surnames and gotras of the Malas indicate some geographical locations like Reddibhoomi for instance. Surnames और Malas के gotras Reddibhoomi उदाहरण के लिए जैसे कुछ भौगोलिक स्थानों संकेत मिलता है.
The Mahars in neighbouring Maharashtra are akin to the Malas. Similar communities are found, the Mala- pahadiyas in Bengal and a similar caste in Tamilnadu. पड़ोसी महाराष्ट्र में महार Malas लिए कर रहे हैं सदृश. समान पाया समुदाय हैं-pahadiyas में बंगाल माला और जाति तमिलनाडु में एक समान. There may be a link to the Mallahs of UP, who are ferrymen (river crossing boats), but I'm not sure. वहाँ के Mallahs, जो ferrymen हैं (नदी पार नावों का लिंक हो सकता है), लेकिन मुझे यकीन नहीं है. Overall, the Malas are still very poor labourers, but many have taken to education and have joined the middle class. कुल मिलाकर, Malas अभी भी बहुत गरीब मजदूर, लेकिन शिक्षा के लिए कई लिया है और मध्यम वर्ग में शामिल हुए. The number of educated professional people with a Mala background, like doctors, engineers is rising steadily. एक माला पृष्ठभूमि के साथ शिक्षित पेशेवर लोगों की संख्या, डॉक्टरों की तरह, इंजीनियरों लगातार बढ़ रहा है. There are many in government service. वहाँ सरकारी सेवा में कई हैं. Long time Mala politicians are quite rich, of course. लंबे समय के नेताओं माला काफी समृद्ध ज़ाहिर है, कर रहे हैं. There are very few Mala industrialists. वहाँ बहुत कुछ माला उद्योगपति हैं.
History इतिहास
Accurate history of the Malas in Andhra is not well known or thoroughly researched as yet. आंध्र में Malas की सटीक इतिहास अच्छी तरह से जाना जाता है या पूरी तरह से अभी तक शोध नहीं है. As far as neighbouring Mahars go, in the state of Maharashtra due to the military tradition of Shivaji, the Mahars who were village servants gave a good account of themselves as soldiers, fighting shoulder to shoulder with the upper caste Marathas and Kunbis. जहां तक जाने के रूप में महार पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के शिवाजी, महार, जो गांव नौकर थे की सैन्य परंपरा के कारण, सैनिकों के रूप में एक स्वयं के अच्छे खाते दिया था, कंधे से लड़ने के लिए ऊंची जातियों मराठों और Kunbis के साथ कंधे. The Mahars suffered a setback during the later Peshwa times. महार बाद में पेशवा समय के दौरान एक झटका सामना करना पड़ा. (according to the funny story a Mahar soldier had something going on with a dancing girl mistress of the prime minister, even after being warned twice, so finally the peshwa fixed the whole community as a punishment). (अजीब कहानी के अनुसार एक महार सैनिक प्रधानमंत्री के एक नृत्य लड़की मालकिन के साथ कुछ चल रहा था, दो बार चेतावनी दी जा रही के बाद भी, तो अंत में एक सजा के रूप में पूरे समुदाय तय पेशवा). But sufficient democratic military tradition remained, and they were recruited by the british as well. लेकिन पर्याप्त सैन्य लोकतांत्रिक परंपरा रही है, और वे ब्रिटिश द्वारा भर्ती थे के रूप में अच्छी तरह से. Later however they were barred from enlisting. लेकिन वे बाद में enlisting से वर्जित किया गया. After independence a Mahar regiment of the Indian army was raised, which is famous and existing to this day. आजादी के बाद भारतीय सेना के महार रेजिमेंट उठाया है, जो प्रसिद्ध है और इस दिन के लिए मौजूदा. ( The thousands of known and unknown Mahars who sacrificed their lives made it possible for leaders like Dr. Ambedkar to emerge later.) (ज्ञात और अज्ञात महार, जो अपने जीवन का बलिदान के हजारों यह संभव डॉ. अम्बेडकर जैसे नेताओं के लिए बने बाद में उभरेगा.)
The Mahars or Malas seem to hail primarily from the drier upland areas like the Deccan plateau. According to researchers like Ambedkar, the mahars and similar communities were actually warriors of some defeated kingdom: they were pushed down in social status. महार या Malas डेक्कन पठार जैसे क्षेत्रों के लिए प्रतीत सुखानेवाला Upland ओलों मुख्य रूप से अम्बेडकर जैसे शोधकर्ताओं के अनुसार., महार और इसी तरह के समुदायों वास्तव में थे राज्य पराजित योद्धाओं में से कुछ: वे सामाजिक स्थिति में नीचे थे धक्का दिया. Another story is that the terrible 12 years' drought and famine of 1396 obliged the people to eat anything to survive: some ate dead cattle, and this was noted by other people and they were then pushed down in the social scale from kshatriyas (soldiers) to untouchables. एक और कहानी है कि भयानक 12 साल के सूखे और 1396 के अकाल को जीवित करने के लिए कुछ भी खाने के लिए लोगों को उपकृत: कुछ मृत पशु खा लिया, और यह अन्य लोगों द्वारा नोट किया गया था और वे तो (क्षत्रियों सैनिकों से सामाजिक स्तर में नीचे धकेल दिया गया था) अछूतों के लिए. They were disarmed but retained as village servants. वे disarmed थे, लेकिन गांव के सेवकों के रूप में बनाए रखा. (about this dietary taboo--long ago when agriculture was developing, oxen became valuable for ploughing newly colonized lands, and to increase their numbers, a taboo was laid on eating beef. There may also be some folk memory of prehistoric CJD mad cow disease outbreaks. Whatever the reason theres a strong aversion to beef prevalent in India among Hindus, while Muslims have a similar horror of eating pig meat. Jains (and many others, too) are strictly vegetarian.) (इस आहार निषेध के बारे में - बहुत पहले जब कृषि का विकास किया गया, बैलों नव औपनिवेशिक भूमि जुताई के लिए मूल्यवान बन गया है, और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए, एक वर्जित गोमांस खाने पर रखा गया था वहाँ भी प्रागैतिहासिक CJD पागल गाय रोग के कुछ लोक स्मृति हो सकता है. प्रकोपों., जो कुछ भी कारण एक मजबूत करने के लिए हिंदुओं के बीच भारत में प्रचलित गोमांस से बचने theres जबकि मुसलमान सुअर का मांस खाने के एक ऐसे ही डरावनी है. जैन (और कई दूसरों को भी) को कड़ाई से शाकाहारी होते हैं.)
It seems the Malas remember something of their past free /ruling status , so they nurse a grievance for their present low status. यह Malas लगता है अपने अतीत मुक्त / सत्तारूढ़ स्थिति के बारे में कुछ याद है, तो उनकी वर्तमान स्थिति के लिए कम वे एक शिकायत नर्स. The community is found all over the Deccan : while some say they were Buddhists and persisted in retaining Buddhism after it had sort of faded away, and were punished by the others who turned to new ideas or brahmanic notions. समुदाय डेक्कन भर में पाया जाता है: जबकि कुछ कहना है कि वे बौद्ध थे और बौद्ध धर्म को बनाए रखने में persisted बाद की तरह था दूर फीका है, और थे जो दूसरों के नए विचारों या धारणाओं को बदल दिया brahmanic द्वारा सजा दी. Some say exactly the opposite, that they were penalised by the turki sultans for stubbornly retaining their old ('hindu' ) ways. कुछ लोगों का कहना बिल्कुल विपरीत है, कि वे अपने पुराने stubbornly ('हिन्दू') तरीकों बनाए रखने के लिए तुर्की सुल्तानों द्वारा दंडित किया गया. (could be true----the malas may have been among the soldiers of the Seunas of Devagiri) Another opinion is that the malas-mahars are not a single community but an amalgamation of several communities, common thread being those excluded from land ownership and status. (सच हो सकता है ---- malas Devagiri के Seunas के सैनिकों के बीच हो सकता है) एक अन्य राय है कि malas-महार एक समुदाय नहीं हैं, लेकिन कई समुदायों, आम धागा के एक समामेलन भूमि के स्वामित्व से बाहर रखा जा रहा है उन स्थिति और. A large proportion is said to be derived from the various immigrant nomads like Sakas -Ahirs -Gurjars . एक बड़ा अनुपात Sakas-Ahirs-गूजर जैसे विभिन्न आप्रवासी nomads से प्राप्त होने के लिए कहा है. Now these people were also hierarchical : the uppercrust became rajas and rajputs while the humble horseman or shepherd nomad slowly became absorbed in the mahar or similar group. अब इन लोगों को भी थे पदानुक्रमित: uppercrust राजाओं और राजपूतों बने जबकि विनम्र घुड़सवार या घुमंतू चरवाहा धीरे महार या इसी तरह के समूह में समाहित हो गया. There is also a deep connection of the mala mahar to the Bhils of central India. वहाँ भी माला महार की गहरी मध्य भारत के Bhils करने के लिए कनेक्शन है.
* Note: the ancient people of the same name may not have any "genetic" connection to present day people: the link is mainly cultural. * ध्यान दें: एक ही नाम के प्राचीन लोगों को किसी भी "आनुवंशिक करने के लिए" दिन लोग उपस्थित कनेक्शन नहीं है: लिंक मुख्य रूप से सांस्कृतिक हो सकता है. This applies to ALL communities. यह सभी समुदायों के लिए लागू होता है.
Personally I feel it also possible that while there may have been additions over the centuries, the original malas were a very widespread, large, specific pre-agricultural or primitive-agricultural food gathering hunting tribe, who found their way of life vanishing as the agricultural peoples slowly took over the countryside. व्यक्तिगत रूप से मैं यह भी महसूस हो सकता है कि जब वहाँ सदियों से जोड़ दिया गया है मई, मूल malas एक बहुत बड़े पैमाने पर, बड़ी, विशिष्ट पूर्व कृषि या आदिम कृषि खाद्य सभा शिकार जनजाति, जो गायब हो जाने के रूप में जीवन के उनके रास्ते पाए गए कृषि लोगों को धीरे धीरे खत्म देहात लिया. Finally when the forests were not sufficient to support them, the remaining malas reluctantly joined the new agricultural society.....as labourers. अंत में जब जंगलों करने के लिए पर्याप्त उन्हें समर्थन नहीं थे, शेष malas अनिच्छा से नए कृषि मजदूरों के रूप में समाज ..... शामिल हो गए. (this seems to have happened to several other tribes, like the madiga too.) (Now this happened many thousands of years ago and is not really associated with the prevalence of Buddhism .) The process is still at work, and can be seen among the Koyas in north andhra pradesh, for instance. (इस के लिए कई अन्य जनजातियों को क्या हुआ है, madiga तरह भी लगता है). (अब इस साल पहले के कई हजारों वास्तव में हुआ और बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ जुड़ा नहीं है.) प्रक्रिया के काम में अब भी है, और के बीच देखा जा सकता है उत्तरी आंध्र प्रदेश में Koyas, उदाहरण के लिए. Later on the various defeated and fleeing soldiers and horsemen and excommunicated peoples were sheltered by the Malas and admitted into the fold. विभिन्न हराया और भाग सैनिकों और सवारों और लोग बाद में excommunicated Malas द्वारा आश्रय थे और गुना में भर्ती कराया.
By the way, interstingly, some ( some, not all) of the people depicted in the older section of Ajanta paintings resemble Malas and Mahars of today. वैसे, interstingly, कुछ (कुछ नहीं, सभी) के लोगों अजंता चित्रों के बड़े भाग में दर्शाया Malas और आज के महार सदृश.
As far as specific cultural elements are concerned, there is a link of the Malas to the deity Vetaal ( also called Bhetal), dismissed by upper caste researchers as "goblin". जहां तक विशिष्ट सांस्कृतिक तत्वों रहे हैं, वहाँ Malas का एक देवता (Vetaal भी Bhetal बुलाया करने के लिए कड़ी है), "" भूत के रूप में उच्च जाति शोधकर्ताओं द्वारा खारिज कर दिया. But it is actually a hunter's deity of prehistoric times. लेकिन यह वास्तव में प्रागैतिहासिक काल के एक शिकारी देवता है. Vetal is also depicted as a horse rider, so there seems to be a cavalry connection to the old mala-mahar. Vetal भी एक घोड़ा सवार के रूप में दर्शाया है, इसलिए वहाँ करने के लिए एक कैवलरी पुराने माला-महार के लिए कनेक्शन हो रहा है. Vetal shrines are extremely common in Deccan area, especially maharashtra. Further, it is my observation that in medieval times an important Vetala shrine was modified to become a well known pilgrimage centre for Hindus (pandharpur). Vetal मंदिरों. रहे डेक्कन में बेहद आम क्षेत्र, खासकर इसके अलावा महाराष्ट्र, यह) है मेरी प्रेक्षण है कि मध्ययुगीन में समय एक महत्वपूर्ण Vetala पंढरपुर (मंदिर हिंदुओं के लिए संशोधित किया गया था एक अच्छी तरह से ज्ञात बनने के तीर्थस्थल के लिए. The name was modified to Vitthala. . नाम Vitthala करने के लिए संशोधित किया गया था.. The annual convoys of pilgrims still traverse the old routes. अभी भी पार तीर्थयात्रियों पुराने मार्गों के वार्षिक convoys. During medieval times the reformers incorporated this shrine in their movements for social reform. मध्ययुगीन काल सुधारकों सामाजिक सुधार के लिए उनके आंदोलनों में शामिल इस मंदिर के दौरान.
Similarly another old cultural element which could be linked to mala-mahars is the deity Khandoba, or sword bearing protector. इसी तरह एक और पुरानी सांस्कृतिक तत्व है जो माला-महार से जोड़ा जा सकता है देवता Khandoba, या तलवार असर रक्षक है. Here also hunting and warfare link is seen. यहाँ भी शिकार और युद्ध लिंक देखा जाता है. (Khandoba is the familiar Skanda/ Kartik /Murgan elsewhere in India). (Khandoba है परिचित स्कंद / कार्तिक / भारत में कहीं Murgan). Then there is some connection with the Parsurama cycle of legends, especially his mother Renuka. तो फिर वहाँ किंवदंतियों के Parsurama चक्र, विशेष रूप से उसकी माँ रेणुका के साथ कुछ कनेक्शन है. This group of legends is connected to the Yellama cult. किंवदंतियों के इस समूह Yellama पंथ से जुड़ा है. Possibly the stories are a residual history of very long ago times, since they are shared by other old communities. संभवतः कहानियाँ बहुत लंबे समय पहले की एक अवशिष्ट इतिहास रहे हैं, क्योंकि वे अन्य पुराने समुदायों द्वारा साझा कर रहे हैं.
Today आज
The Malas are generally healthy, well built, stocky, dark complexioned, with large heads and faces, well proportioned limbs etc.. Malas आम तौर पर स्वस्थ, अच्छी तरह से बनाया, नाटा, अंधेरे complexioned, बड़े सिर और चेहरे के साथ, अच्छी तरह से अंगों आदि proportioned. They are very tough and capable of sustained physical work which few communities can match. वे बहुत ही कठिन है और निरंतर शारीरिक काम है जो कुछ समुदायों से मिलान कर सकते में सक्षम हैं. Perhaps thats why they have a good sense of humour and are cheerful. शायद Thats क्यों वे हास्य की अच्छी समझ है और हंसमुख हैं. By the way Andhra area was renowned for wrestlers and wrestling, locally called Malla yuddha. जिस तरह आंध्र क्षेत्र पहलवानों और कुश्ती के लिए प्रसिद्ध था, स्थानीय मल्ल yuddha बुलाया करके. Martial arts exponents, boxers were called veera mushti. मार्शल कला exponents, मुक्केबाज वीरा mushti कहा जाता था. (mushti=fist). (Mushti = मुट्ठी). A copper plate commendation issued by Krishna devaraya to a group of Veera Mala Mushtis came to light recently.(try google with search words "the hindu mala mashti krishna devaraya" ). एक तांबे प्लेट कृष्णा devaraya द्वारा वीरा माला Mushtis के एक समूह को जारी प्रशस्ति को हाल ही में प्रकाश में आया. (कोशिश खोज शब्दों में "हिन्दू के साथ गूगल माला mashti कृष्णा devaraya").
At the same time they are said to be always thinking about some shortcut scheme or the other, somewhat lazy (if they can get away with it). एक ही समय वे हमेशा कुछ शॉर्टकट योजना या अन्य, कुछ आलसी के बारे में सोच किया जाना कहा जाता है पर (अगर वे दूर इसके साथ मिल सकता है). They are said to be unselfish, "have a helping nature" towards everybody, but slightly suspicous of intentions of the forward communites. , Communites सबको मदद की दिशा में एक "प्रकृति है, लेकिन थोड़ा आगे के इरादों का suspicous उन्होंने कहा जाता है बेगरज हो". They are very much attached to their community-caste ( although they act as if they are not --- they act innocent until caught out, when they embarassedly laugh). वे बहुत ही अपने समुदाय जाति से जुड़ी ज्यादा हैं (हालांकि वे अधिनियम के रूप में यदि वे नहीं कर रहे हैं --- वे निर्दोष अभिनय जब तक बाहर पकड़ा, जब वे embarassedly हंसी).
Discrimination भेदभाव
They are at a total loss to understand why they face discrimination, since as far as they know they have not harmed anybody, but in fact toiled hard for the benefit of all. The more perceptive of the community understand it is an old method to keep down wages of agricultural labour. वे नुकसान कुल रहे हैं पर एक समझने के लिए क्यों वे किसी को नुकसान नहीं भेदभाव का सामना करना है, क्योंकि के रूप में दूर के रूप में जानते हैं कि वे वे, लेकिन सभी के लाभ के लिए कठिन मेहनत वास्तव में समुदाय. महसूस की और अधिक समझ में यह रखने के लिए है एक पुरानी पद्धति कृषि श्रमिकों की मजदूरी नीचे. The condition of farm labourers (who are mostly scheduled castes) is very bad, especially in dry zone areas. खेत (मजदूरों ज्यादातर अनुसूचित जातियों, जो कर रहे हैं की हालत) बहुत बुरा क्षेत्र शुष्क क्षेत्रों में, विशेष रूप से है. The farmworkers in irrigated areas are slightly better off. सिंचित क्षेत्रों में farmworkers थोड़ा बेहतर बंद कर रहे हैं.
Education:--Several pioneering members have taken to education after tackling great discrimination and jeering : many far sighted forward caste people, christian missionaries gave them a boost---but the malas put in the required effort. शिक्षा: - कई अग्रणी सदस्यों को शिक्षा के लिए ले लिया है महान भेदभाव और jeering: कई दूर आगे जाति के लोगों को देखा से निपटने के बाद ईसाई मिशनरियों उन्हें दे दिया एक बढ़ावा --- लेकिन malas आवश्यक प्रयास में डाल दिया. Overall the community today clearly understands education is the key. कुल मिलाकर आज समुदाय स्पष्ट रूप से शिक्षा को समझता है कुंजी है. "Maaku sakti ledu saar" --we cant afford it (referring to childrens education) is the refrain heard over and over again especially in rural areas. "Maaku Sakti ledu सार" - हम कठबोली यह (शिक्षा बच्चों की बात है) फिर से ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से और अधिक से अधिक सुना बचना बनती हैं. However the womenfolk are showing great determination, utilising all avenues, and it is only a matter of time. हालांकि womenfolk महान दृढ़ संकल्प दिखा रहे हैं, सभी रास्ते का उपयोग, और यह केवल समय की बात है. Menfolk unfortunately are susceptible to liquor. पुरुष दुर्भाग्य से शराब के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. The unskilled farm labourers are gradually migrating to the towns and picking up technical subjects as best as they can, and joining the service workers and industrial workers. अकुशल मजदूरों खेत धीरे धीरे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं और तकनीकी विषयों को चुनने के रूप में वे कर सकते हैं अच्छा है, और सेवा के कर्मचारियों और औद्योगिक श्रमिकों ज्वाइन. Some save up money to buy small farms but these are a very small number. कुछ अप करने के लिए छोटे फार्मों खरीद लेकिन इनमें से एक बहुत छोटी संख्या में हैं पैसे बचाने. The affirmative action programs mandatory on the Government have also helped a very large number to "rise" especially the educational programs. सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम सरकार पर अनिवार्य है भी एक बहुत बड़ी संख्या में मदद करने के लिए "" विशेष रूप से शैक्षिक कार्यक्रमों वृद्धि. Some members have benefited by joining the various bureaucracies. कुछ सदस्यों ने विभिन्न bureaucracies में शामिल होने से लाभ हुआ है. The youth in cities is keen to take up modern methods like computers, but still lack a bit in confidence in themselves and generally tend to seek patronage of certain upper castes. शहरों में युवाओं को कंप्यूटर की तरह आधुनिक तरीके उठाने को तैयार है, लेकिन अभी भी अपने आप में विश्वास में एक सा है और आम तौर पर कुछ ऊंची जातियों के संरक्षण चाहते हैं की कमी है.
The Malas are said to be followers of the Reddis and by extension the Congress. Malas कहा जाता Reddis के अनुयायी हो सकता है और कांग्रेस के विस्तार के द्वारा. This has its roots in the landholdings of the Reddis, where Malas are said to be traditionally employed. इस Reddis, जहां Malas कहा जाता है पारंपरिक नियोजित किया जा के landholdings में अपनी जड़ों की है. Curiously the Malas who are the subject of (senseless) discrimination from the upper castes, are also culprits of the same mean activity. मजे की बात है जो Malas के विषय रहे हैं (बेहोश) ऊंची जातियों से भेदभाव, को भी एक ही मतलब है गतिविधि के अपराधियों. Unfortunately the Malas look down on the Madigas and traditionally had no use for them, and there is a history of clashes with the Madigas, who are another large SC community of south India. दुर्भाग्य Malas Madigas पर नीचे देखो और परंपरागत उनके लिए कोई फायदा नहीं था, और वहाँ Madigas, जो दक्षिण भारत की एक और बड़ी अनुसूचित जाति समुदाय के हैं के साथ संघर्ष का एक इतिहास है. The educated members of the Malas and Madigas regret such a thing should exist but admit this is so. Malas और Madigas के शिक्षित सदस्यों को एक ऐसी चीज़ चाहिए मौजूद हैं लेकिन अफसोस यह तो मानता है. It is not a creation of the "wily brahmins", but is derived from a tribal rivalry which existed before any upper caste ever came into existence. यह "चतुर" ब्राह्मण का निर्माण नहीं है, लेकिन है एक आदिवासी प्रतिद्वंद्विता है जो किसी भी उच्च जाति से पहले ही अस्तित्व में से व्युत्पन्न कभी अस्तित्व में आया. The conflict today is actually fueled by the madigas' assertion the malas have cornered most of the social benefits of affirmative action programs. संघर्ष आज वास्तव में 'madigas अभिकथन द्वारा fueled malas सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रमों की सामाजिक लाभ के अधिकांश cornered है. (Naturally this is a fertile area for others to meddle.) (यह स्वाभाविक रूप से हस्तक्षेप करने के लिए दूसरों के लिए एक उपजाऊ क्षेत्र है.)
A section of the Mala also turned to christianity but after noticing the same old caste games, shifted to protestantism instead. माला का एक वर्ग भी ईसाई धर्म को बदल दिया है लेकिन वही पुरानी जाति का खेल देख के बाद, Protestantism के बजाय स्थानांतरित कर दिया. They are prominent in the Church of South India, for instance and have made very good use of the educational programs. वे दक्षिण भारत के चर्च में प्रमुख हैं, उदाहरण के लिए है और शैक्षिक कार्यक्रमों का बहुत अच्छा उपयोग किया है. (more caste based denominations were formed after this, with others saying Malas had picked up the wrong ideas from upper castes.....). (अधिक जाति आधारित मूल्यवर्ग इसके बाद का गठन किया गया कह Malas उठाया था ऊंची जातियों .....). से गलत विचारों को दूसरों के साथ, For some reason the Malas were never attracted to islam in a big way. किसी कारण के Malas करने के लिए एक बड़े पैमाने पर आकर्षित किया गया कभी इस्लाम के लिए. Perhaps it was because the sultans realised their tax revenue ultimately came from the agricultural labour and wern't enthusiastic about reducing this. शायद यह था, क्योंकि उनके सुल्तानों कर राजस्व का एहसास अंततः कृषि और इस को कम करने के बारे में श्रम wern't उत्साही से आया है. Even today large portion of the crops in India is derived from SC labour. आज भी भारत में फसलों का बड़ा हिस्सा अनुसूचित जाति श्रम से व्युत्पन्न है.
Overall, at least in Andhra Pradesh and Maharashtra, the Mala-mahar are forging ahead very rapidly. कुल मिलाकर, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र, माला महार में कम से कम आगे फोर्जिंग बहुत तेजी से कर रहे हैं. They are very deeply attached to the works of Dr Ambedkar. वे बहुत गहराई से जुड़ी डॉ. अम्बेडकर का काम करती हैं. But few malas have taken to Buddhism in Andhra pradesh. लेकिन कुछ malas आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म के लिए ले लिया है. The mala quarters in villages generally have a statue of Dr. Ambedkar. गांवों में माला तिमाहियों आम तौर पर डॉ. अम्बेडकर की मूर्ति है. Very soon the malas will become "BC" rather than "SC". बहुत जल्द malas बन जाएगा "ईसा" बजाय "अनुसूचित जाति". ie will display better social development indicators as a community. यानी एक समुदाय के रूप में बेहतर सामाजिक विकास संकेतकों को प्रदर्शित करेगा.
The Malas are a large geographically dispersed community found in Andhra Pradesh and several other states of India. Malas एक बड़े भौगोलिक दृष्टि से छितरी हुई है आंध्र प्रदेश और भारत के कई अन्य राज्यों में पाया समुदाय के हैं. Since last few centuries due to various reasons ( discussed later) they are considered to be of low social status, but that hasn't stopped them from rising to the occasion now and then. के बाद से विभिन्न कारणों की वजह से (बाद में) पर चर्चा वे कम सामाजिक स्थिति की हो, लेकिन माना जाता है कि उन्हें अवसर अब बढ़ती से नहीं रोका है और फिर पिछले कुछ सदियों से. They are technically "scheduled castes" or "ex-untouchables" but in reality they are a key part of the rural scene, being agricultural workers, and appointed in bygone days as village servants and village watchmen . वे तकनीकी रूप से कर रहे हैं "अनुसूचित" जातियों या पूर्व अछूतों लेकिन वास्तविकता में, वे ग्रामीण दृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा किया जा रहा है कृषि मजदूरों, कर्मचारियों और गांव और गांव के चौकीदार के रूप में बीते दिनों में नियुक्त किया. The upper crust of the Malas in cities are taking to education in a big way and rapidly modernising. शहरों में Malas की ऊपरी परत को एक बड़े पैमाने पर शिक्षा के लिए ले जा रहे हैं और तेजी से आधुनिकीकरण. (Actually in andhra pradesh many of these urban Malas ought to be considered BC not SC if social indicators are any index). (आंध्र इन शहरी Malas के कई प्रदेश में असल चाहिए ईसा पूर्व माना जाता अनुसूचित जाति के लिए नहीं है अगर सामाजिक संकेतकों के किसी भी सूचकांक हैं).
As far as I know, among Malas apart from farmworkers there is only a small occupational subcaste, that of Mala weavers. जहाँ तक मुझे पता है, के बीच में Malas farmworkers अलावा वहाँ सिर्फ एक छोटी सी व्यावसायिक subcaste है, माला बुनकरों की. They dont seem to have any artisanal speciality otherwise. वे न किसी artisanal अन्यथा विशेषता है लगता है. The surnames and gotras of the Malas indicate some geographical locations like Reddibhoomi for instance. Surnames और Malas के gotras Reddibhoomi उदाहरण के लिए जैसे कुछ भौगोलिक स्थानों संकेत मिलता है.
The Mahars in neighbouring Maharashtra are akin to the Malas. Similar communities are found, the Mala- pahadiyas in Bengal and a similar caste in Tamilnadu. पड़ोसी महाराष्ट्र में महार Malas लिए कर रहे हैं सदृश. समान पाया समुदाय हैं-pahadiyas में बंगाल माला और जाति तमिलनाडु में एक समान. There may be a link to the Mallahs of UP, who are ferrymen (river crossing boats), but I'm not sure. वहाँ के Mallahs, जो ferrymen हैं (नदी पार नावों का लिंक हो सकता है), लेकिन मुझे यकीन नहीं है. Overall, the Malas are still very poor labourers, but many have taken to education and have joined the middle class. कुल मिलाकर, Malas अभी भी बहुत गरीब मजदूर, लेकिन शिक्षा के लिए कई लिया है और मध्यम वर्ग में शामिल हुए. The number of educated professional people with a Mala background, like doctors, engineers is rising steadily. एक माला पृष्ठभूमि के साथ शिक्षित पेशेवर लोगों की संख्या, डॉक्टरों की तरह, इंजीनियरों लगातार बढ़ रहा है. There are many in government service. वहाँ सरकारी सेवा में कई हैं. Long time Mala politicians are quite rich, of course. लंबे समय के नेताओं माला काफी समृद्ध ज़ाहिर है, कर रहे हैं. There are very few Mala industrialists. वहाँ बहुत कुछ माला उद्योगपति हैं.
History इतिहास
Accurate history of the Malas in Andhra is not well known or thoroughly researched as yet. आंध्र में Malas की सटीक इतिहास अच्छी तरह से जाना जाता है या पूरी तरह से अभी तक शोध नहीं है. As far as neighbouring Mahars go, in the state of Maharashtra due to the military tradition of Shivaji, the Mahars who were village servants gave a good account of themselves as soldiers, fighting shoulder to shoulder with the upper caste Marathas and Kunbis. जहां तक जाने के रूप में महार पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के शिवाजी, महार, जो गांव नौकर थे की सैन्य परंपरा के कारण, सैनिकों के रूप में एक स्वयं के अच्छे खाते दिया था, कंधे से लड़ने के लिए ऊंची जातियों मराठों और Kunbis के साथ कंधे. The Mahars suffered a setback during the later Peshwa times. महार बाद में पेशवा समय के दौरान एक झटका सामना करना पड़ा. (according to the funny story a Mahar soldier had something going on with a dancing girl mistress of the prime minister, even after being warned twice, so finally the peshwa fixed the whole community as a punishment). (अजीब कहानी के अनुसार एक महार सैनिक प्रधानमंत्री के एक नृत्य लड़की मालकिन के साथ कुछ चल रहा था, दो बार चेतावनी दी जा रही के बाद भी, तो अंत में एक सजा के रूप में पूरे समुदाय तय पेशवा). But sufficient democratic military tradition remained, and they were recruited by the british as well. लेकिन पर्याप्त सैन्य लोकतांत्रिक परंपरा रही है, और वे ब्रिटिश द्वारा भर्ती थे के रूप में अच्छी तरह से. Later however they were barred from enlisting. लेकिन वे बाद में enlisting से वर्जित किया गया. After independence a Mahar regiment of the Indian army was raised, which is famous and existing to this day. आजादी के बाद भारतीय सेना के महार रेजिमेंट उठाया है, जो प्रसिद्ध है और इस दिन के लिए मौजूदा. ( The thousands of known and unknown Mahars who sacrificed their lives made it possible for leaders like Dr. Ambedkar to emerge later.) (ज्ञात और अज्ञात महार, जो अपने जीवन का बलिदान के हजारों यह संभव डॉ. अम्बेडकर जैसे नेताओं के लिए बने बाद में उभरेगा.)
The Mahars or Malas seem to hail primarily from the drier upland areas like the Deccan plateau. According to researchers like Ambedkar, the mahars and similar communities were actually warriors of some defeated kingdom: they were pushed down in social status. महार या Malas डेक्कन पठार जैसे क्षेत्रों के लिए प्रतीत सुखानेवाला Upland ओलों मुख्य रूप से अम्बेडकर जैसे शोधकर्ताओं के अनुसार., महार और इसी तरह के समुदायों वास्तव में थे राज्य पराजित योद्धाओं में से कुछ: वे सामाजिक स्थिति में नीचे थे धक्का दिया. Another story is that the terrible 12 years' drought and famine of 1396 obliged the people to eat anything to survive: some ate dead cattle, and this was noted by other people and they were then pushed down in the social scale from kshatriyas (soldiers) to untouchables. एक और कहानी है कि भयानक 12 साल के सूखे और 1396 के अकाल को जीवित करने के लिए कुछ भी खाने के लिए लोगों को उपकृत: कुछ मृत पशु खा लिया, और यह अन्य लोगों द्वारा नोट किया गया था और वे तो (क्षत्रियों सैनिकों से सामाजिक स्तर में नीचे धकेल दिया गया था) अछूतों के लिए. They were disarmed but retained as village servants. वे disarmed थे, लेकिन गांव के सेवकों के रूप में बनाए रखा. (about this dietary taboo--long ago when agriculture was developing, oxen became valuable for ploughing newly colonized lands, and to increase their numbers, a taboo was laid on eating beef. There may also be some folk memory of prehistoric CJD mad cow disease outbreaks. Whatever the reason theres a strong aversion to beef prevalent in India among Hindus, while Muslims have a similar horror of eating pig meat. Jains (and many others, too) are strictly vegetarian.) (इस आहार निषेध के बारे में - बहुत पहले जब कृषि का विकास किया गया, बैलों नव औपनिवेशिक भूमि जुताई के लिए मूल्यवान बन गया है, और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए, एक वर्जित गोमांस खाने पर रखा गया था वहाँ भी प्रागैतिहासिक CJD पागल गाय रोग के कुछ लोक स्मृति हो सकता है. प्रकोपों., जो कुछ भी कारण एक मजबूत करने के लिए हिंदुओं के बीच भारत में प्रचलित गोमांस से बचने theres जबकि मुसलमान सुअर का मांस खाने के एक ऐसे ही डरावनी है. जैन (और कई दूसरों को भी) को कड़ाई से शाकाहारी होते हैं.)
It seems the Malas remember something of their past free /ruling status , so they nurse a grievance for their present low status. यह Malas लगता है अपने अतीत मुक्त / सत्तारूढ़ स्थिति के बारे में कुछ याद है, तो उनकी वर्तमान स्थिति के लिए कम वे एक शिकायत नर्स. The community is found all over the Deccan : while some say they were Buddhists and persisted in retaining Buddhism after it had sort of faded away, and were punished by the others who turned to new ideas or brahmanic notions. समुदाय डेक्कन भर में पाया जाता है: जबकि कुछ कहना है कि वे बौद्ध थे और बौद्ध धर्म को बनाए रखने में persisted बाद की तरह था दूर फीका है, और थे जो दूसरों के नए विचारों या धारणाओं को बदल दिया brahmanic द्वारा सजा दी. Some say exactly the opposite, that they were penalised by the turki sultans for stubbornly retaining their old ('hindu' ) ways. कुछ लोगों का कहना बिल्कुल विपरीत है, कि वे अपने पुराने stubbornly ('हिन्दू') तरीकों बनाए रखने के लिए तुर्की सुल्तानों द्वारा दंडित किया गया. (could be true----the malas may have been among the soldiers of the Seunas of Devagiri) Another opinion is that the malas-mahars are not a single community but an amalgamation of several communities, common thread being those excluded from land ownership and status. (सच हो सकता है ---- malas Devagiri के Seunas के सैनिकों के बीच हो सकता है) एक अन्य राय है कि malas-महार एक समुदाय नहीं हैं, लेकिन कई समुदायों, आम धागा के एक समामेलन भूमि के स्वामित्व से बाहर रखा जा रहा है उन स्थिति और. A large proportion is said to be derived from the various immigrant nomads like Sakas -Ahirs -Gurjars . एक बड़ा अनुपात Sakas-Ahirs-गूजर जैसे विभिन्न आप्रवासी nomads से प्राप्त होने के लिए कहा है. Now these people were also hierarchical : the uppercrust became rajas and rajputs while the humble horseman or shepherd nomad slowly became absorbed in the mahar or similar group. अब इन लोगों को भी थे पदानुक्रमित: uppercrust राजाओं और राजपूतों बने जबकि विनम्र घुड़सवार या घुमंतू चरवाहा धीरे महार या इसी तरह के समूह में समाहित हो गया. There is also a deep connection of the mala mahar to the Bhils of central India. वहाँ भी माला महार की गहरी मध्य भारत के Bhils करने के लिए कनेक्शन है.
* Note: the ancient people of the same name may not have any "genetic" connection to present day people: the link is mainly cultural. * ध्यान दें: एक ही नाम के प्राचीन लोगों को किसी भी "आनुवंशिक करने के लिए" दिन लोग उपस्थित कनेक्शन नहीं है: लिंक मुख्य रूप से सांस्कृतिक हो सकता है. This applies to ALL communities. यह सभी समुदायों के लिए लागू होता है.
Personally I feel it also possible that while there may have been additions over the centuries, the original malas were a very widespread, large, specific pre-agricultural or primitive-agricultural food gathering hunting tribe, who found their way of life vanishing as the agricultural peoples slowly took over the countryside. व्यक्तिगत रूप से मैं यह भी महसूस हो सकता है कि जब वहाँ सदियों से जोड़ दिया गया है मई, मूल malas एक बहुत बड़े पैमाने पर, बड़ी, विशिष्ट पूर्व कृषि या आदिम कृषि खाद्य सभा शिकार जनजाति, जो गायब हो जाने के रूप में जीवन के उनके रास्ते पाए गए कृषि लोगों को धीरे धीरे खत्म देहात लिया. Finally when the forests were not sufficient to support them, the remaining malas reluctantly joined the new agricultural society.....as labourers. अंत में जब जंगलों करने के लिए पर्याप्त उन्हें समर्थन नहीं थे, शेष malas अनिच्छा से नए कृषि मजदूरों के रूप में समाज ..... शामिल हो गए. (this seems to have happened to several other tribes, like the madiga too.) (Now this happened many thousands of years ago and is not really associated with the prevalence of Buddhism .) The process is still at work, and can be seen among the Koyas in north andhra pradesh, for instance. (इस के लिए कई अन्य जनजातियों को क्या हुआ है, madiga तरह भी लगता है). (अब इस साल पहले के कई हजारों वास्तव में हुआ और बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ जुड़ा नहीं है.) प्रक्रिया के काम में अब भी है, और के बीच देखा जा सकता है उत्तरी आंध्र प्रदेश में Koyas, उदाहरण के लिए. Later on the various defeated and fleeing soldiers and horsemen and excommunicated peoples were sheltered by the Malas and admitted into the fold. विभिन्न हराया और भाग सैनिकों और सवारों और लोग बाद में excommunicated Malas द्वारा आश्रय थे और गुना में भर्ती कराया.
By the way, interstingly, some ( some, not all) of the people depicted in the older section of Ajanta paintings resemble Malas and Mahars of today. वैसे, interstingly, कुछ (कुछ नहीं, सभी) के लोगों अजंता चित्रों के बड़े भाग में दर्शाया Malas और आज के महार सदृश.
As far as specific cultural elements are concerned, there is a link of the Malas to the deity Vetaal ( also called Bhetal), dismissed by upper caste researchers as "goblin". जहां तक विशिष्ट सांस्कृतिक तत्वों रहे हैं, वहाँ Malas का एक देवता (Vetaal भी Bhetal बुलाया करने के लिए कड़ी है), "" भूत के रूप में उच्च जाति शोधकर्ताओं द्वारा खारिज कर दिया. But it is actually a hunter's deity of prehistoric times. लेकिन यह वास्तव में प्रागैतिहासिक काल के एक शिकारी देवता है. Vetal is also depicted as a horse rider, so there seems to be a cavalry connection to the old mala-mahar. Vetal भी एक घोड़ा सवार के रूप में दर्शाया है, इसलिए वहाँ करने के लिए एक कैवलरी पुराने माला-महार के लिए कनेक्शन हो रहा है. Vetal shrines are extremely common in Deccan area, especially maharashtra. Further, it is my observation that in medieval times an important Vetala shrine was modified to become a well known pilgrimage centre for Hindus (pandharpur). Vetal मंदिरों. रहे डेक्कन में बेहद आम क्षेत्र, खासकर इसके अलावा महाराष्ट्र, यह) है मेरी प्रेक्षण है कि मध्ययुगीन में समय एक महत्वपूर्ण Vetala पंढरपुर (मंदिर हिंदुओं के लिए संशोधित किया गया था एक अच्छी तरह से ज्ञात बनने के तीर्थस्थल के लिए. The name was modified to Vitthala. . नाम Vitthala करने के लिए संशोधित किया गया था.. The annual convoys of pilgrims still traverse the old routes. अभी भी पार तीर्थयात्रियों पुराने मार्गों के वार्षिक convoys. During medieval times the reformers incorporated this shrine in their movements for social reform. मध्ययुगीन काल सुधारकों सामाजिक सुधार के लिए उनके आंदोलनों में शामिल इस मंदिर के दौरान.
Similarly another old cultural element which could be linked to mala-mahars is the deity Khandoba, or sword bearing protector. इसी तरह एक और पुरानी सांस्कृतिक तत्व है जो माला-महार से जोड़ा जा सकता है देवता Khandoba, या तलवार असर रक्षक है. Here also hunting and warfare link is seen. यहाँ भी शिकार और युद्ध लिंक देखा जाता है. (Khandoba is the familiar Skanda/ Kartik /Murgan elsewhere in India). (Khandoba है परिचित स्कंद / कार्तिक / भारत में कहीं Murgan). Then there is some connection with the Parsurama cycle of legends, especially his mother Renuka. तो फिर वहाँ किंवदंतियों के Parsurama चक्र, विशेष रूप से उसकी माँ रेणुका के साथ कुछ कनेक्शन है. This group of legends is connected to the Yellama cult. किंवदंतियों के इस समूह Yellama पंथ से जुड़ा है. Possibly the stories are a residual history of very long ago times, since they are shared by other old communities. संभवतः कहानियाँ बहुत लंबे समय पहले की एक अवशिष्ट इतिहास रहे हैं, क्योंकि वे अन्य पुराने समुदायों द्वारा साझा कर रहे हैं.
Today आज
The Malas are generally healthy, well built, stocky, dark complexioned, with large heads and faces, well proportioned limbs etc.. Malas आम तौर पर स्वस्थ, अच्छी तरह से बनाया, नाटा, अंधेरे complexioned, बड़े सिर और चेहरे के साथ, अच्छी तरह से अंगों आदि proportioned. They are very tough and capable of sustained physical work which few communities can match. वे बहुत ही कठिन है और निरंतर शारीरिक काम है जो कुछ समुदायों से मिलान कर सकते में सक्षम हैं. Perhaps thats why they have a good sense of humour and are cheerful. शायद Thats क्यों वे हास्य की अच्छी समझ है और हंसमुख हैं. By the way Andhra area was renowned for wrestlers and wrestling, locally called Malla yuddha. जिस तरह आंध्र क्षेत्र पहलवानों और कुश्ती के लिए प्रसिद्ध था, स्थानीय मल्ल yuddha बुलाया करके. Martial arts exponents, boxers were called veera mushti. मार्शल कला exponents, मुक्केबाज वीरा mushti कहा जाता था. (mushti=fist). (Mushti = मुट्ठी). A copper plate commendation issued by Krishna devaraya to a group of Veera Mala Mushtis came to light recently.(try google with search words "the hindu mala mashti krishna devaraya" ). एक तांबे प्लेट कृष्णा devaraya द्वारा वीरा माला Mushtis के एक समूह को जारी प्रशस्ति को हाल ही में प्रकाश में आया. (कोशिश खोज शब्दों में "हिन्दू के साथ गूगल माला mashti कृष्णा devaraya").
At the same time they are said to be always thinking about some shortcut scheme or the other, somewhat lazy (if they can get away with it). एक ही समय वे हमेशा कुछ शॉर्टकट योजना या अन्य, कुछ आलसी के बारे में सोच किया जाना कहा जाता है पर (अगर वे दूर इसके साथ मिल सकता है). They are said to be unselfish, "have a helping nature" towards everybody, but slightly suspicous of intentions of the forward communites. , Communites सबको मदद की दिशा में एक "प्रकृति है, लेकिन थोड़ा आगे के इरादों का suspicous उन्होंने कहा जाता है बेगरज हो". They are very much attached to their community-caste ( although they act as if they are not --- they act innocent until caught out, when they embarassedly laugh). वे बहुत ही अपने समुदाय जाति से जुड़ी ज्यादा हैं (हालांकि वे अधिनियम के रूप में यदि वे नहीं कर रहे हैं --- वे निर्दोष अभिनय जब तक बाहर पकड़ा, जब वे embarassedly हंसी).
Discrimination भेदभाव
They are at a total loss to understand why they face discrimination, since as far as they know they have not harmed anybody, but in fact toiled hard for the benefit of all. The more perceptive of the community understand it is an old method to keep down wages of agricultural labour. वे नुकसान कुल रहे हैं पर एक समझने के लिए क्यों वे किसी को नुकसान नहीं भेदभाव का सामना करना है, क्योंकि के रूप में दूर के रूप में जानते हैं कि वे वे, लेकिन सभी के लाभ के लिए कठिन मेहनत वास्तव में समुदाय. महसूस की और अधिक समझ में यह रखने के लिए है एक पुरानी पद्धति कृषि श्रमिकों की मजदूरी नीचे. The condition of farm labourers (who are mostly scheduled castes) is very bad, especially in dry zone areas. खेत (मजदूरों ज्यादातर अनुसूचित जातियों, जो कर रहे हैं की हालत) बहुत बुरा क्षेत्र शुष्क क्षेत्रों में, विशेष रूप से है. The farmworkers in irrigated areas are slightly better off. सिंचित क्षेत्रों में farmworkers थोड़ा बेहतर बंद कर रहे हैं.
Education:--Several pioneering members have taken to education after tackling great discrimination and jeering : many far sighted forward caste people, christian missionaries gave them a boost---but the malas put in the required effort. शिक्षा: - कई अग्रणी सदस्यों को शिक्षा के लिए ले लिया है महान भेदभाव और jeering: कई दूर आगे जाति के लोगों को देखा से निपटने के बाद ईसाई मिशनरियों उन्हें दे दिया एक बढ़ावा --- लेकिन malas आवश्यक प्रयास में डाल दिया. Overall the community today clearly understands education is the key. कुल मिलाकर आज समुदाय स्पष्ट रूप से शिक्षा को समझता है कुंजी है. "Maaku sakti ledu saar" --we cant afford it (referring to childrens education) is the refrain heard over and over again especially in rural areas. "Maaku Sakti ledu सार" - हम कठबोली यह (शिक्षा बच्चों की बात है) फिर से ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से और अधिक से अधिक सुना बचना बनती हैं. However the womenfolk are showing great determination, utilising all avenues, and it is only a matter of time. हालांकि womenfolk महान दृढ़ संकल्प दिखा रहे हैं, सभी रास्ते का उपयोग, और यह केवल समय की बात है. Menfolk unfortunately are susceptible to liquor. पुरुष दुर्भाग्य से शराब के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. The unskilled farm labourers are gradually migrating to the towns and picking up technical subjects as best as they can, and joining the service workers and industrial workers. अकुशल मजदूरों खेत धीरे धीरे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं और तकनीकी विषयों को चुनने के रूप में वे कर सकते हैं अच्छा है, और सेवा के कर्मचारियों और औद्योगिक श्रमिकों ज्वाइन. Some save up money to buy small farms but these are a very small number. कुछ अप करने के लिए छोटे फार्मों खरीद लेकिन इनमें से एक बहुत छोटी संख्या में हैं पैसे बचाने. The affirmative action programs mandatory on the Government have also helped a very large number to "rise" especially the educational programs. सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम सरकार पर अनिवार्य है भी एक बहुत बड़ी संख्या में मदद करने के लिए "" विशेष रूप से शैक्षिक कार्यक्रमों वृद्धि. Some members have benefited by joining the various bureaucracies. कुछ सदस्यों ने विभिन्न bureaucracies में शामिल होने से लाभ हुआ है. The youth in cities is keen to take up modern methods like computers, but still lack a bit in confidence in themselves and generally tend to seek patronage of certain upper castes. शहरों में युवाओं को कंप्यूटर की तरह आधुनिक तरीके उठाने को तैयार है, लेकिन अभी भी अपने आप में विश्वास में एक सा है और आम तौर पर कुछ ऊंची जातियों के संरक्षण चाहते हैं की कमी है.
The Malas are said to be followers of the Reddis and by extension the Congress. Malas कहा जाता Reddis के अनुयायी हो सकता है और कांग्रेस के विस्तार के द्वारा. This has its roots in the landholdings of the Reddis, where Malas are said to be traditionally employed. इस Reddis, जहां Malas कहा जाता है पारंपरिक नियोजित किया जा के landholdings में अपनी जड़ों की है. Curiously the Malas who are the subject of (senseless) discrimination from the upper castes, are also culprits of the same mean activity. मजे की बात है जो Malas के विषय रहे हैं (बेहोश) ऊंची जातियों से भेदभाव, को भी एक ही मतलब है गतिविधि के अपराधियों. Unfortunately the Malas look down on the Madigas and traditionally had no use for them, and there is a history of clashes with the Madigas, who are another large SC community of south India. दुर्भाग्य Malas Madigas पर नीचे देखो और परंपरागत उनके लिए कोई फायदा नहीं था, और वहाँ Madigas, जो दक्षिण भारत की एक और बड़ी अनुसूचित जाति समुदाय के हैं के साथ संघर्ष का एक इतिहास है. The educated members of the Malas and Madigas regret such a thing should exist but admit this is so. Malas और Madigas के शिक्षित सदस्यों को एक ऐसी चीज़ चाहिए मौजूद हैं लेकिन अफसोस यह तो मानता है. It is not a creation of the "wily brahmins", but is derived from a tribal rivalry which existed before any upper caste ever came into existence. यह "चतुर" ब्राह्मण का निर्माण नहीं है, लेकिन है एक आदिवासी प्रतिद्वंद्विता है जो किसी भी उच्च जाति से पहले ही अस्तित्व में से व्युत्पन्न कभी अस्तित्व में आया. The conflict today is actually fueled by the madigas' assertion the malas have cornered most of the social benefits of affirmative action programs. संघर्ष आज वास्तव में 'madigas अभिकथन द्वारा fueled malas सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रमों की सामाजिक लाभ के अधिकांश cornered है. (Naturally this is a fertile area for others to meddle.) (यह स्वाभाविक रूप से हस्तक्षेप करने के लिए दूसरों के लिए एक उपजाऊ क्षेत्र है.)
A section of the Mala also turned to christianity but after noticing the same old caste games, shifted to protestantism instead. माला का एक वर्ग भी ईसाई धर्म को बदल दिया है लेकिन वही पुरानी जाति का खेल देख के बाद, Protestantism के बजाय स्थानांतरित कर दिया. They are prominent in the Church of South India, for instance and have made very good use of the educational programs. वे दक्षिण भारत के चर्च में प्रमुख हैं, उदाहरण के लिए है और शैक्षिक कार्यक्रमों का बहुत अच्छा उपयोग किया है. (more caste based denominations were formed after this, with others saying Malas had picked up the wrong ideas from upper castes.....). (अधिक जाति आधारित मूल्यवर्ग इसके बाद का गठन किया गया कह Malas उठाया था ऊंची जातियों .....). से गलत विचारों को दूसरों के साथ, For some reason the Malas were never attracted to islam in a big way. किसी कारण के Malas करने के लिए एक बड़े पैमाने पर आकर्षित किया गया कभी इस्लाम के लिए. Perhaps it was because the sultans realised their tax revenue ultimately came from the agricultural labour and wern't enthusiastic about reducing this. शायद यह था, क्योंकि उनके सुल्तानों कर राजस्व का एहसास अंततः कृषि और इस को कम करने के बारे में श्रम wern't उत्साही से आया है. Even today large portion of the crops in India is derived from SC labour. आज भी भारत में फसलों का बड़ा हिस्सा अनुसूचित जाति श्रम से व्युत्पन्न है.
Overall, at least in Andhra Pradesh and Maharashtra, the Mala-mahar are forging ahead very rapidly. कुल मिलाकर, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र, माला महार में कम से कम आगे फोर्जिंग बहुत तेजी से कर रहे हैं. They are very deeply attached to the works of Dr Ambedkar. वे बहुत गहराई से जुड़ी डॉ. अम्बेडकर का काम करती हैं. But few malas have taken to Buddhism in Andhra pradesh. लेकिन कुछ malas आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म के लिए ले लिया है. The mala quarters in villages generally have a statue of Dr. Ambedkar. गांवों में माला तिमाहियों आम तौर पर डॉ. अम्बेडकर की मूर्ति है. Very soon the malas will become "BC" rather than "SC". बहुत जल्द malas बन जाएगा "ईसा" बजाय "अनुसूचित जाति". ie will display better social development indicators as a community. यानी एक समुदाय के रूप में बेहतर सामाजिक विकास संकेतकों को प्रदर्शित करेगा.
मैत्रख और महार का अर्थ सूर्य होता है मेहर कोम भी सूर्य उपासक है
समुद्र किनारे की एक बहादुर कौम
कुरुक्षेत्र महायुद्ध का समराध धाता श्री कृष्ण यह सौराष्ट्र से तहाँ गए यदी यह पाँच हजार वर्ष पूर्व का सौराष्ट्र की जिसमें उस समय की मेरुक (महेर) कोम यदि आज वह बरडा प्रदेश में जस रही है समुद्र तीर की वह सुवीर कोम का ऐतिहासिक प्रकरण यदि इतिहास की कबर में समा गए हैं। बरडा प्रदेश वासी पोरबंदर शहर से उन्नाीस मील की दुश श्री वझात भकत से प्रसिद्धि प्राप्त किया हुआ वीसीवाड़ा गाँव मगर सिको पौराणिक यात्री गण मुख्य द्वार का मूल द्वारका मानते हैं, वही विंझात भकत का जन्म मरहे, महोआ, आहिर, रबारी यह खास है बहोतर सी बरडा प्रदेश के सताधिस थे और जिस की बहादुरी से और दान भक्ति कहानियों का वावरणे आज दिन तक गज रहा है। ऐसी महेर प्रजा है हाल यदि जेठवा राणा की ध्वज छाया में अवशेष तुल्य जीवित है लेकिन उनका बड़ा सुडोल शरीर जलद और जुस्सेदार जोरदार प्रकृति और वीरता रंगीत जिसकी आदतें और तिरंदाजी धनुषबाण शास्त्र विद्या में अति निपुणता युक्त गति यह प्रजा एशिया में उतर आएा हैं। यूँ कहते हैं मो रायनोद ने विदित कि हुई यदि जाट जाति वह जेठवा होंगे और मैत्रक जाति वे मेहर होंगे और मोरायनोटने यह मेरूके जाति को नाविक भी कहते हैं। इलीयंट नाक का लेखक यह मेरुका कोम का थाना दान्युब सरिता के तीर होने का लिखा है। गुप्तवंश के राजाओं का अध: पतन काल के प्रसंग में मीहीर कोम का उल्लेख है। राजा बुद्ध गुप्त राज्य शासन चलाने में असक्त था। राजतंत्र शिथिल हो गया। उस अरसे में प्राणवान और बहादुर प्रजा हमला करके सौराष्ट्र में गुप्त वंशों राजाओं को निकाल दिए और राजतंत्र स्वहस्तक कर दिया। यूँ दिखता है कि वियॅवान प्राणवान बहादु प्रजाा ने यदि वह वल्लभीपुर में ताम्बपत्र में लिखा हुआ यह सौराष्ट्र निवासी बने हुए मैत्रक मन्डलोही होना चाहिए। मैत्रख और महार का अर्थ सूर्य होता है मेहर कोम भी सूर्य उपासक है। बरडा विभाग में बहुत सूर्य मंदिर है। यह सूर्य दिवालय महेर कोम के ही स्थापित किए हुए हैं। यदि महेर और जेठवा दोनों ही मकर ध्वज के यदि पुत्र हो तो मेहर और जेठवा दोनों एक ही कोम होनी चाहिए। इ.स. 460 के अरसे बाद मेहर प्रजा सौराष्ट्र में आकर रहने लगी होगी। ऐसा ज्ञात होता है कि यह मेहर प्रजा अनुपम शक्तिशाली थे। यदि ऐसा न होता तो यह मैत्रक मंडल के वल्लभीपुर के लेख में मैत्रक संभावित न हो। क्योंकि मेहरों की स्वतंत्र सत्ता होनी चाहिए। मेहर लोकों ने सौराष्ट्र के राज्यों को इ.स. 770 विस्तार ज्यादा में सर किया और राज्य का होने से मेहर शासन के दो विभाग बनाए। एक बरडा जिला की सत्ता और दूसरी गाहिलवाड़ जिला की सत्ता। ऐसे सत्ता मे दो विभाग हुए। इ.स. 847 समय में मध्य गुजरात में यदि मेहर कोम ने दावपेचक दौरा किया ता संचार किया था ऐसा परिचित होता है। इ.स. 860 में असर में मेहर प्रजा ने घुमली पर सर्वोत्कृष्ट राजसत्ता स्थापित की थी ऐसा विदित होता है और उस समय मे मगर यह मेहर कोम सौराष्ट्र में वैभव और विजय के शिखर के रूप में थे। इ.स. 604 के समय में मेहर प्रजा का सौराष्ट्र में स्वतंत्र राज्य शासन था। ऐसा मालूम होता है कि घुमली का राज्य समन होने से यदि यह मेहर कोम ने श्रीनगर और कोंटेला पोरबंदर के निकट में आकर अपना राज्य कायम किया। इ.स. 712 में अरबों ने सिंध पर चड़ाई करी थी। उस समय भी यह सौराष्ट्र की मेहर बलवान कोम ने वह अरबों सैन्य का सामना किया था यह संभव है। चित्तौड़ मेवाड़ का महाराणा लाखा के शरणागत मेरतीया मेहर का आश्रय के लिया। राणा ने रहने को बेदनुर गाँव जागिर में दिया और दूसरे यदी चले गए। वह मेरतीया महेर बरडा डुंगर के समिट आब से यदी यह मेरतीया भी मेहर होंगे ऐसा संभव है।
गोहिल राजपूत यही मेहर गोहिल साथ के सन्मध से हुए हो क्योंकि गोहिल महेर विवाह व्यवहार हुआ यह उपरोक्त है। गोहिल अपने को सालीवाहन वंशज मानते हैं और यह सूर्यवंशी हैं। गोहिल राजपूत मारवाड़ से भाग कर सौराष्ट्र में जूनागढ़ के खेंगार के पीछे जो सेजकजी गोहिल सैन्य का सरदार था उसने अपनी पुत्री को रा खेंगार के साथ विवाह किया। और तिस पीछे रा खेंगार ने सेजकजी को जागीर दी। उस पठे में सेजकजी गोहिल ने उनके नाम का गाँव सेजकपुर आबाद किया। वह सेजकजी का भाई वीसाजी ने महर कन्या के साथ लग्न संबंध किया और मेहर कोम में मिल गए। वह जाति के यदी मेहर गोहिल मेहर कहलाए। मेर लोग अपने को राजपूत और जेठवा क्षत्रीय मानते हैं और मेहर ओर जेठवा एक ही हैं, यह कथन सत्य। जेठवा क्षत्रिय मेहर कन्याओं के साथ लग्न ग्रंथीत होते ही तो मगर इतना ही नहीं लेकिन जेठवा आहिर ओर काठी की पुत्रियों के साथ भो लग्न करते ऐसा टोड वेस्टर्न इंडिया में लिखा है कि जेठवा और मेहर यदि एक ही हो तो मीहिर ओर मेहर अगर समय व्यतीत यदि वह सातसी प्रजा होगा और वह सर्व समुदाय में यदी बलवान व सौर्यवान को राजा रूप स्वीकृत कर शासक नियुक्त किया होगा। शासक विभाग बढ़ता गया यदि जिससे शासक और शासित विभाग जेठवा और मेहर भिन्ना भिन्ना हुए। जेठवा वंश को शासन इस बनाने में यह मेहर कोम ने अमूल्य हिस्सा दिया है। कर्नल बार्टन दूसरे स्थान कहेता के मेहर यह जेठवा ही है।
घुमली महेर लोगों का ओर जेठवा वंश का पाँच सतक तक पाटनगर था। मेहर लोगों ने वल्लभीपुर के पीछे सौराष्ट्र के दक्षिण भाग पर अपना शासन चलाने के लिए घुमती को पाटगर बनाया था। इ.स. का दसवाँ शतक तक घुमली जेठवाओं की राजधानी होनी चाहिए। ऐसे कितने दान पत्रों पर से मालूम होता है। घुमली की कारीगरी कला के कितन अवशेष यही राजकोट अजायबघर में है।
- मेहर क्षत्रिय वंश का इतिहास पुस्तक से।
महार आडनावे
लढवय्या कामगार नेता
कॉम्रेड आर. बी. मोरे
डॉ. बाबासाहेबांच्या चळवळीतून एकेकाळी काही तरुण कार्यकर्ते कम्युनिस्ट पक्षात गेले त्यामध्ये आर. बी. मोरे यांच्यासारख्या तळमळीच्या कार्यकर्त्याचाही समावेश होता. कम्युनिस्ट पक्षात जाण्यासाठी बाबासाहेबांनीच त्यांना नकळत संमतीच दिली होती. बाबासाहेब आंबेडकरांच्या विचारांशी एकरुप झालेल्या आर. बी. मोरे यांच्या या बदललेल्या राजकीय प्रवासाबद्दल समकालीनांनी आश्चर्य व्यक्त केले असले तरी आंबेडकर व मोरे यांच्यातील वैचारिक नाते हे अत्यंत घट्ट होेते. त्याची साक्षा अनेक प्रसंगातून मिळत राहाते. डॉ. बाबासाहेब कॉ. मोरेंच्या बाबतीत म्हणाले होते, ‘‘हा आर. बी. मोरे फार मोठा माणूस. ज्या थोड्या व्यक्तींच्या प्रयत्नामुळे मी राजकारणात प्रवेश केला त्यातील हे एक मोरे.‘‘ (संदर्भ दलित व कम्युनिस्ट चळवळीचा सशक्त दुवा- कॉ. मोरे).
कॉ. मोरे ज्या वर्गातून चळवळीत आले होते त्याची शिकवण त्यांना त्यांच्या जगण्याच्या अनुभवातून आली होती. अगदी शालेय जीवनातून त्यांना अनेक प्रसंगी अवहेलना सहन करीत शिकावे लागले होते. मुळात ते नम्र होते. त्यामुळेच डॉ. बाबासाहेबांचे कार्य, विचार, चळवळ ही आपली आणि आपल्या समाजाची जगण्याची दिशा आहे. या वाटेवरूनच चळवळीचा मार्ग सापडेल, अशी त्यांना आशा होती. त्यामुळेच या मार्गाला जवळ करून तो शेवटपर्यंत चळवळीसाठी जगले. ‘बहिष्कृत भारत‘ हे डॉ. बाबासाहेबांनी सुरू केलेले वर्तमानपत्र चालविण्यात त्यांचा मोठा सहभाग होता.
कॉ. मोरेंचा जन्म १ मार्च १९०३ सालचा. २००३ साली जन्म शतवार्षिक साजरे झाले आणि शंभर वर्षांनंतर त्यांच्या नावाने त्यांच्या म्हणजे त्यांचे ज्या गावाला शिक्षण झाले त्या ठिकाणी प्राथमिक, माध्यमिक विद्यालयाचे नाव देण्याचा कार्यक्रम होत आहे. हे त्यांचे पहिले स्मारक. आंबेडकरी चळवळ व कम्युनिस्ट चळवळीचे एक अग्रणी, क्रांतिकारक चळवळीतील नेहमीच कार्यरत राहिलेले एक आगळेवेगळे व्यक्तिमत्त्व. त्यांचा जन्म लाडवळीचा (आजोळी) त्यांचे मूळगाव मुंबई-गोवा हमरस्त्यावरील माणगाव तालुक्यातील लोणरे. जिथे आज डॉ. आंबेडकर तंत्र विद्यालय आहे. दासगाव ठिकाणी त्यांचे शिक्षण झाले. त्याच गावात हा नामांतराचा सोहळा होत आहे, ही महत्त्वाची बाब आहे.
कॉ. मोरे यांचे जीवन म्हणजे एक काट्याकुट्याचा प्रवास. मनस्ताप, अपमान, अवहेलना, आमिषे लाथाडून पुन्हा सहन करून ते हे जीवन जगले. त्यांच्या या कहाण्या चळवळीतील अनेक वयस्कर मंडळी सांगताना दिसतात.
त्या काळात अस्पृश्यांना घरांवर कौले घालता येत नव्हती. काहीची आर्थिक परिस्थिती असूनही स्पृश्य म्हणायचे, ‘अस्पृश्य माजले असा तो काळ.‘ कोकणातील थोड्या मंडळींना शिक्षण मिळाले ते केवळ त्यांच्या मिलिटरी पेशांमुळे. कोकणात अस्पृश्यांना शिक्षण देणारी एकमेव शाळा होती दासगावला. त्याच शाळेत मोरेंच्या मोठ्या भावाने शिक्षण घेतले आणि ते शिक्षक झाले. मोरेंच्या वडिलांचे मामेभाऊ देखील याच शाळेतून शिकून शिक्षक झाले. त्यांना मासिक पगार सात रुपये होता. दासगाव बंदरावरचे गाव. त्यांच्या वडिलांचे मामा विठ्ठल जोशी (जोशी आडनावे पूर्वी महारांमध्ये होती) ज्योतिष पंचांग पाहणे, हा त्यांचा खानदानी व्यवसाय होता. त्यांना मोडी लिपी अवगत होती. ते जोशी गहाण खते, खरेदी खते, शासकीय कागदपत्रे बनवून देत आणि त्यांना त्यांचे पैसे मिळत. त्यानंतर ते जंगल ठेकेदार झाले. रत्नागिरी दापोलीला जाणार्या रस्त्यावर दासगाव, त्या गावाला लष्करातून सेवानिवृत्त झालेली पूर्वाश्रमीची महार मंडळी स्थायिक झाली होती. आणि इतर ठिकाणची अनेक मंडळी याच गावात स्थायिक होण्यासाठी इच्छुक असायची. थोडक्यात याच गावात महार लोकांचे वर्चस्व होते.
१९१४ साली अलिबागला स्कॉलरशिपच्या परीक्षेला पहिला आलेला मोरे विद्यार्थी दासगावच्या शाळेतील होता आणि महिना स्कॉलरशिप होती पाच रुपये. शिक्षकाला पगार होता सात रुपये. म्हणजे विचार करा ही रक्कम केवढी मोठी होती. पण पुढे महाडच्या शाळेत मोरेंना प्रवेश मिळेना. दोन वर्षे फुकट गेली. आणि प्रवेश मिळाला केवळ यशवंत गोपाळ टिपणीस यांच्या प्रयत्नामुळे. पण महाडच्या धारप कर्मठ घराण्याचे शिक्षक काय म्हणाले, ‘‘माझे जिवात जीव असेपर्यंत मी तुला शिवणार नाही‘‘ अशी मोरेंना वागणूक मिळत होती.
मोरेंना शाळेत पाणी मिळेना. विद्यार्थीदशेत असताना महाडमध्ये येणार्या समाजातील स्त्रियांना, मिलिटरी पेन्शनर यांना कचेरीबाहेर उन्हात उभे रहावे लागते. मोळ्या विकणार्या बायांना बाजारात पाणी मिळत नाही यासाठी आपल्याला काहीतरी करावेच लागेल म्हणून मोरेंनी गावात अनेक मंडळींशी चर्चा केली आणि गाडीतळात चहाचे हॉटेल काढण्याचे धाडस केले. शेतात मांडव घालून अस्पृश्यांची चहाची आणि पाण्याची व्यवस्था झाली. त्यासाठी मोरेंच्या सांगण्यावरून मोहोतकर नावाचे पहिले महाडचे दुकानदार म्हणून नावाजले.
पुढे मोरे यांच्या प्रयत्नामुळे पेठेत दुसरे हॉटेल सुरू झाले. कारण गाडीतळातले हॉटेल पावसाळ्यात बंद करावे लागे. मोरेंनी शाळेबरोबर सामाजिक व्यापही लावून घेतले होते. तो त्यांच्या धडपडण्याचा स्वभाव होता. हे हॉटेल म्हणजे सुमारे २०० महार लोकांचे एक विचारआचार करण्याचे एक ठिकाण झाले.
आपल्या महाडमध्ये अस्पृश्यता केव्हा आणि कशी नष्ट करता येईल याचा त्यांनी ध्यासच घेतला. जनतेत जागृती घडविण्याची नितांत गरज आहे, हे त्यांनी जाणले आणि समाजबांधवांना संघटित केले. हे तसे विचारांना चालना देणारे काम सोपे नव्हते. त्यांचे शिक्षण चालू असताना १९२० पर्यंत डॉ. बाबासाहेबांच्या एकूण व्यक्तिमत्त्वाची त्यांनी माहिती मिळविली आणि डॉ. बाबासाहेबांना एकदाचे भेटावयाचे हे मनात नक्की केले. १९४५ च्या ऑक्टोबरमध्ये पॅरिस आंतरराष्ट्रीय मजूर परिषदेसाठी कॉ. मोरे यांची निवड झाली आणि त्या परिषदेला ते हजर झाले. सल्लागार प्रतिनिधी नात्याने समितीच्या अहवालावर त्यांनी भाषण केले. ‘अस्पृश्य जातीत जन्मलेल्या कामगारांना भारतात कामगार म्हणूनही समान वागणूक दिली जात नाही. मुंबईतील गिरण्यातील कापड खात्यात त्यांना प्रवेश दिला जात नाही व सरकारही त्याकडे दुर्लक्ष करते‘‘ ही गोष्ट आय्.एल.ओ.च्या व कम्युनिस्ट चळवळीच्या इतिहासात पहिल्यांदाच मांडून त्यांनी इतिहास घडविला. १९२८ च्या दरम्यान ऐतिहासिक संप झाला, त्यावेळी मागणी करण्यात आली होती. कापड विणण्याच्या कामात कामगाराला तोंडात धागा धरावे लागे. हेच काम मुसलमान वा ख्रिश्चन कामगाराला दिले तर सवर्ण हिंदू गिरणी कामगार विरोध करीत नसत. पण कापड विणण्याच्या कामात अस्पृश्य कामगाराला वगळले जायचे. स्वतः बाबासाहेबही कम्युनिस्टांचा हा उणेपणा दाखवायचे, हे कॉ. मोरेंना माहिती होते. त्याआधी आंतरराष्ट्रीय कामगार परिषदा झाल्या, पण अस्पृश्य कामगारांची ही अवहेलना मांडण्यात आली नव्हती. मोरेंवर कम्युनिस्ट पक्षाने टीका केली. तरीही पक्षाला त्यांच्या कार्याची आणि शोषित कामगारांच्या प्रती असलेली निष्ठा माहीत होती. म्हणूनच पक्षही सावध होता.
कॉ. मोरे जेव्हा जेव्हा बाबासाहेबांना भेटत, तेव्हा कम्युनिस्ट पक्षाची प्रकाशने त्यांना नेऊन देत. तेव्हा डॉ. बाबासाहेब त्या साहित्याचे पैसे मोरेंच्या हाती देत. मोरेंची आर्थिक स्थिती त्यांना ठाऊक होती. त्यांच्यावर आर्थिक भार पडू नये हा त्याच्यामागचा उद्देश होता. डॉ. बाबासाहेबांची साथ सोडून त्यांचे अनुयायी काँग्रेस पक्षात सामील झाले. व्यक्तिगत स्वार्थासाठी. मोरे ध्येयवादाने कम्युनिस्ट पक्षात गेले. कम्युनिस्ट वैयक्तिक स्वार्थासाठी काम करीत नाहीत हे डॉ. बाबासाहेबांना ठाऊक होते. म्हणून भर सभेतून डॉ. बाबासाहेब गरजायचे, ‘कॉ. मोरेंकडे पाहा.‘ त्यांना मोरेंबद्दल नेहमीच आदर वाटायचा. त्या वेळचे बाबासाहेबांचे अनुयायी व्यक्तिवादावर पोसलेले होते. डॉ. बाबासाहेबांच्या अनुयायांत आणि मोरेंमध्ये हाच नेमका फरक होता. कॉ. मोरेंच्या डोक्यात खासदार/ आमदार ही पदे आणि स्वार्थी राजकारण नव्हते. डॉ. बाबासाहेबांनी त्यांच्या पक्षाच्या वतीने दोनदा उभे राहण्याचे सुचविले, पण कॉ. मोरेंनी नम्रपणे डॉ. बाबासाहेबांना नकार दिला. डॉ. बाबासाहेबांना देखील कॉ. मोरेंच्या प्रेमामुळे, आदरामुळे आग्रह करता आला नाही.
नासिक मंदिर प्रवेश सत्याग्रहाच्या वेळी कॉ. मोरे कम्युनिस्ट पक्षाचे सदस्य होते. पक्ष संघटना आणि कामगार संघटना बांधण्याचे काम त्यांच्याकडे होते. त्यांच्या पक्षाची त्यांच्याकडून मोठी अपेक्षा होती. १९३० साली ‘आव्हान‘ नावाचे वर्तमानपत्र सुरू केले. त्यात शेतकरी व अस्पृश्य यांचे लढे आणि त्यांच्या समस्या मांडल्याच, पण नासिक मंदिर सत्याग्रह समर्थनार्थ स्वतःच्या अध्यक्षतेखाली सभा घेतल्या. आणि त्यासाठी निधी गोळा केला. एवढेच नव्हे, तर पक्षाच्या कार्यकर्त्यांना घेऊन त्यांचे नेतृत्व कॉ. बाबुराव गरुड यांच्याकडे सोपविले. १९३०-३१ च्या दरम्यान मोरे यांचे काम कुलाबा जिल्ह्यात सुरू असताना गिरणी कामगार, गोदी कामगार, रेल्वे कामगार, बी.ई.एस.टी. कामगार यांच्या संघटनेत नेते सक्रिय होते. ‘रेड ट्रेड युनियन काँग्रेस‘ची स्थापना करण्यात आली. तिच्या नेतृत्वाखाली गिरणी कामगार युनियनची कार्यकारिणी निवडण्यात आली. यात कॉ. जांभेकर, कॉ. मोरे यांची निवड झाली. या युनियनच्या कार्यालयात पाण्याची दोन मडकी दिसू लागली. एक अस्पृश्यांसाठी आणि एक स्पृश्यांसाठी. कॉ. मोरेंना हा प्रकार खटकला. कॉ. मोरेंनी कॉ. रणदिवेंच्या हे कानावर घातल्यावर तेही गोंधळले. मोरे एवढेच म्हणाले, ‘‘मडके एकच ठेवा. जाती-पातीचा विटाळ ज्यांना असेल ते बाहेर हॉटेलात पाणी पितील. यातून आपणही कम्युनिस्ट जाती-पातीच्या बाबतीत किती कठोर आहोत, हेही स्पष्टपणे लोकांपुढे जाईल. असे आपण निर्भयपणे करीत नाही, म्हणूनच दलितांची स्वतंत्र चळवळ उभी राहलेली आहे.‘‘ १९३३ नंतर कार्यालयातील पाण्याचे मडके कायमचे फोडण्यात आले. आणि एकच मडके सगळ्यांसाठी दिसू लागले. ही आंबेडकरांच्या स्वतंत्र चळवळीने कम्युनिस्ट चळवळीला दिलेली देन आहे.
कॉ. मोरे महार समाज सेवा संघाचे चिटणीस होते. ठिकठिकाणी सामाजिक, राजकीय विषयांवर केशव ठाकरे, श्यामराव परुळेकर, एस. व्ही. देशपांडे इत्यादी मान्यवरांची व्याख्याने आयोजित करून शोषित समाजाला जागृत करण्याचे काम कॉ. मोरे यांनी निःस्वार्थपणे केले. त्यामुळे समाज बोलू लागला. जो समाज मुका-बहिरा होता तो जागृतीचे गाणे गाऊ आणि ऐकू लागला. १९३० च्या दरम्यान मोरे कम्युनिस्ट पक्षात सामील झाले. मानवाच्या अंतिम शोषण मुक्तीचे काम ते करावयास निघाले होते, हे ऐकल्यावर कॉ. मोरेंवर डॉ. बाबासाहेब रागावले नाहीत. त्यांचे धाडस पाहून ते म्हणाले, ‘‘मी तुझ्या प्रामाणिकपणाने व ध्येयवादाने भारावून गेलो आहे. मला तुझा अभिमान वाटतो. मला एक शिष्य असा लाभला की, जो माझ्या जातीचा आहे. भेकड नाही. शूर आहे तो स्वतःच म्हणतो मी तुम्हाला जाणीवपूर्वक सोडून अखिल मानव जातीच्या मुक्तीच्या लढाईत सामील व्हायला जात आहे!! शेवटी डॉ. बाबासाहेब म्हणाले, ‘‘तिकडे जाऊनही तू किमान माझ्या वर्तमानपत्र चालविण्याच्या कार्यातही सहभागी राहिलास तर मला आनंदच वाटेल. शेवटी तुझी मर्जी. माझा तुझ्या जाण्याला बिलकूल विरोध नाही,‘‘ अशा तर्हेने कॉ. मोरेंना निरोप देण्यात आला. आज कित्येक वर्षांनी दासगावला त्यांच्या नावाने शाळेचे उद्घाटन होत आहे. शैक्षणिक चळवळीचे स्मारक नवीन येणार्या पिढीला सतत प्रेरणा देईल. कॉ. मोरेंच्या कार्याचे तिथल्या भावकीने स्मरण केले हेही कमी महत्त्वाचे नाही. शोषितांच्या चळवळीसाठी जो जगतो आणि खपतो ती माती कधीतरी त्या कार्यकर्त्याची दखल घेते. कार्यकर्ता एकदाच जन्माला येतो. अर्थात कॉ. मोरेंसारखा ध्यासाने प्रेरित झालेला. ११ मे १९७२ साली मोरे यांचे मुंबईत निधन झाले. त्यांचे कोणत्याही प्रकारचे धार्मिक विधी झाले नाहीत. कॉ. मोरे यांच्या परिवाराने स्मशानातून त्यांच्या अस्थी आणल्या नाहीत वा मरणोत्तर धार्मिक विधीही केले नाहीत. ‘‘मोरे जरी कम्युनिस्ट होते तरी डॉ. बाबासाहेबांच्या सर्वात जवळचे जर कोण वाटत होते तर मोरे! असा बाबासाहेबांचा आवडता चेला हरपला आहे, अशा शब्दात डॉ. बाबासाहेबांच्या अनुयायांनी त्यांना आदरांजली वाहिली होती. यातच कॉ. मोरे किती मोठे होते ते दिसून येते.
रमाकांत जाधव
कॉम्रेड आर. बी. मोरे
कॉ. मोरे ज्या वर्गातून चळवळीत आले होते त्याची शिकवण त्यांना त्यांच्या जगण्याच्या अनुभवातून आली होती. अगदी शालेय जीवनातून त्यांना अनेक प्रसंगी अवहेलना सहन करीत शिकावे लागले होते. मुळात ते नम्र होते. त्यामुळेच डॉ. बाबासाहेबांचे कार्य, विचार, चळवळ ही आपली आणि आपल्या समाजाची जगण्याची दिशा आहे. या वाटेवरूनच चळवळीचा मार्ग सापडेल, अशी त्यांना आशा होती. त्यामुळेच या मार्गाला जवळ करून तो शेवटपर्यंत चळवळीसाठी जगले. ‘बहिष्कृत भारत‘ हे डॉ. बाबासाहेबांनी सुरू केलेले वर्तमानपत्र चालविण्यात त्यांचा मोठा सहभाग होता.
कॉ. मोरेंचा जन्म १ मार्च १९०३ सालचा. २००३ साली जन्म शतवार्षिक साजरे झाले आणि शंभर वर्षांनंतर त्यांच्या नावाने त्यांच्या म्हणजे त्यांचे ज्या गावाला शिक्षण झाले त्या ठिकाणी प्राथमिक, माध्यमिक विद्यालयाचे नाव देण्याचा कार्यक्रम होत आहे. हे त्यांचे पहिले स्मारक. आंबेडकरी चळवळ व कम्युनिस्ट चळवळीचे एक अग्रणी, क्रांतिकारक चळवळीतील नेहमीच कार्यरत राहिलेले एक आगळेवेगळे व्यक्तिमत्त्व. त्यांचा जन्म लाडवळीचा (आजोळी) त्यांचे मूळगाव मुंबई-गोवा हमरस्त्यावरील माणगाव तालुक्यातील लोणरे. जिथे आज डॉ. आंबेडकर तंत्र विद्यालय आहे. दासगाव ठिकाणी त्यांचे शिक्षण झाले. त्याच गावात हा नामांतराचा सोहळा होत आहे, ही महत्त्वाची बाब आहे.
कॉ. मोरे यांचे जीवन म्हणजे एक काट्याकुट्याचा प्रवास. मनस्ताप, अपमान, अवहेलना, आमिषे लाथाडून पुन्हा सहन करून ते हे जीवन जगले. त्यांच्या या कहाण्या चळवळीतील अनेक वयस्कर मंडळी सांगताना दिसतात.
त्या काळात अस्पृश्यांना घरांवर कौले घालता येत नव्हती. काहीची आर्थिक परिस्थिती असूनही स्पृश्य म्हणायचे, ‘अस्पृश्य माजले असा तो काळ.‘ कोकणातील थोड्या मंडळींना शिक्षण मिळाले ते केवळ त्यांच्या मिलिटरी पेशांमुळे. कोकणात अस्पृश्यांना शिक्षण देणारी एकमेव शाळा होती दासगावला. त्याच शाळेत मोरेंच्या मोठ्या भावाने शिक्षण घेतले आणि ते शिक्षक झाले. मोरेंच्या वडिलांचे मामेभाऊ देखील याच शाळेतून शिकून शिक्षक झाले. त्यांना मासिक पगार सात रुपये होता. दासगाव बंदरावरचे गाव. त्यांच्या वडिलांचे मामा विठ्ठल जोशी (जोशी आडनावे पूर्वी महारांमध्ये होती) ज्योतिष पंचांग पाहणे, हा त्यांचा खानदानी व्यवसाय होता. त्यांना मोडी लिपी अवगत होती. ते जोशी गहाण खते, खरेदी खते, शासकीय कागदपत्रे बनवून देत आणि त्यांना त्यांचे पैसे मिळत. त्यानंतर ते जंगल ठेकेदार झाले. रत्नागिरी दापोलीला जाणार्या रस्त्यावर दासगाव, त्या गावाला लष्करातून सेवानिवृत्त झालेली पूर्वाश्रमीची महार मंडळी स्थायिक झाली होती. आणि इतर ठिकाणची अनेक मंडळी याच गावात स्थायिक होण्यासाठी इच्छुक असायची. थोडक्यात याच गावात महार लोकांचे वर्चस्व होते.
१९१४ साली अलिबागला स्कॉलरशिपच्या परीक्षेला पहिला आलेला मोरे विद्यार्थी दासगावच्या शाळेतील होता आणि महिना स्कॉलरशिप होती पाच रुपये. शिक्षकाला पगार होता सात रुपये. म्हणजे विचार करा ही रक्कम केवढी मोठी होती. पण पुढे महाडच्या शाळेत मोरेंना प्रवेश मिळेना. दोन वर्षे फुकट गेली. आणि प्रवेश मिळाला केवळ यशवंत गोपाळ टिपणीस यांच्या प्रयत्नामुळे. पण महाडच्या धारप कर्मठ घराण्याचे शिक्षक काय म्हणाले, ‘‘माझे जिवात जीव असेपर्यंत मी तुला शिवणार नाही‘‘ अशी मोरेंना वागणूक मिळत होती.
मोरेंना शाळेत पाणी मिळेना. विद्यार्थीदशेत असताना महाडमध्ये येणार्या समाजातील स्त्रियांना, मिलिटरी पेन्शनर यांना कचेरीबाहेर उन्हात उभे रहावे लागते. मोळ्या विकणार्या बायांना बाजारात पाणी मिळत नाही यासाठी आपल्याला काहीतरी करावेच लागेल म्हणून मोरेंनी गावात अनेक मंडळींशी चर्चा केली आणि गाडीतळात चहाचे हॉटेल काढण्याचे धाडस केले. शेतात मांडव घालून अस्पृश्यांची चहाची आणि पाण्याची व्यवस्था झाली. त्यासाठी मोरेंच्या सांगण्यावरून मोहोतकर नावाचे पहिले महाडचे दुकानदार म्हणून नावाजले.
पुढे मोरे यांच्या प्रयत्नामुळे पेठेत दुसरे हॉटेल सुरू झाले. कारण गाडीतळातले हॉटेल पावसाळ्यात बंद करावे लागे. मोरेंनी शाळेबरोबर सामाजिक व्यापही लावून घेतले होते. तो त्यांच्या धडपडण्याचा स्वभाव होता. हे हॉटेल म्हणजे सुमारे २०० महार लोकांचे एक विचारआचार करण्याचे एक ठिकाण झाले.
आपल्या महाडमध्ये अस्पृश्यता केव्हा आणि कशी नष्ट करता येईल याचा त्यांनी ध्यासच घेतला. जनतेत जागृती घडविण्याची नितांत गरज आहे, हे त्यांनी जाणले आणि समाजबांधवांना संघटित केले. हे तसे विचारांना चालना देणारे काम सोपे नव्हते. त्यांचे शिक्षण चालू असताना १९२० पर्यंत डॉ. बाबासाहेबांच्या एकूण व्यक्तिमत्त्वाची त्यांनी माहिती मिळविली आणि डॉ. बाबासाहेबांना एकदाचे भेटावयाचे हे मनात नक्की केले. १९४५ च्या ऑक्टोबरमध्ये पॅरिस आंतरराष्ट्रीय मजूर परिषदेसाठी कॉ. मोरे यांची निवड झाली आणि त्या परिषदेला ते हजर झाले. सल्लागार प्रतिनिधी नात्याने समितीच्या अहवालावर त्यांनी भाषण केले. ‘अस्पृश्य जातीत जन्मलेल्या कामगारांना भारतात कामगार म्हणूनही समान वागणूक दिली जात नाही. मुंबईतील गिरण्यातील कापड खात्यात त्यांना प्रवेश दिला जात नाही व सरकारही त्याकडे दुर्लक्ष करते‘‘ ही गोष्ट आय्.एल.ओ.च्या व कम्युनिस्ट चळवळीच्या इतिहासात पहिल्यांदाच मांडून त्यांनी इतिहास घडविला. १९२८ च्या दरम्यान ऐतिहासिक संप झाला, त्यावेळी मागणी करण्यात आली होती. कापड विणण्याच्या कामात कामगाराला तोंडात धागा धरावे लागे. हेच काम मुसलमान वा ख्रिश्चन कामगाराला दिले तर सवर्ण हिंदू गिरणी कामगार विरोध करीत नसत. पण कापड विणण्याच्या कामात अस्पृश्य कामगाराला वगळले जायचे. स्वतः बाबासाहेबही कम्युनिस्टांचा हा उणेपणा दाखवायचे, हे कॉ. मोरेंना माहिती होते. त्याआधी आंतरराष्ट्रीय कामगार परिषदा झाल्या, पण अस्पृश्य कामगारांची ही अवहेलना मांडण्यात आली नव्हती. मोरेंवर कम्युनिस्ट पक्षाने टीका केली. तरीही पक्षाला त्यांच्या कार्याची आणि शोषित कामगारांच्या प्रती असलेली निष्ठा माहीत होती. म्हणूनच पक्षही सावध होता.
कॉ. मोरे जेव्हा जेव्हा बाबासाहेबांना भेटत, तेव्हा कम्युनिस्ट पक्षाची प्रकाशने त्यांना नेऊन देत. तेव्हा डॉ. बाबासाहेब त्या साहित्याचे पैसे मोरेंच्या हाती देत. मोरेंची आर्थिक स्थिती त्यांना ठाऊक होती. त्यांच्यावर आर्थिक भार पडू नये हा त्याच्यामागचा उद्देश होता. डॉ. बाबासाहेबांची साथ सोडून त्यांचे अनुयायी काँग्रेस पक्षात सामील झाले. व्यक्तिगत स्वार्थासाठी. मोरे ध्येयवादाने कम्युनिस्ट पक्षात गेले. कम्युनिस्ट वैयक्तिक स्वार्थासाठी काम करीत नाहीत हे डॉ. बाबासाहेबांना ठाऊक होते. म्हणून भर सभेतून डॉ. बाबासाहेब गरजायचे, ‘कॉ. मोरेंकडे पाहा.‘ त्यांना मोरेंबद्दल नेहमीच आदर वाटायचा. त्या वेळचे बाबासाहेबांचे अनुयायी व्यक्तिवादावर पोसलेले होते. डॉ. बाबासाहेबांच्या अनुयायांत आणि मोरेंमध्ये हाच नेमका फरक होता. कॉ. मोरेंच्या डोक्यात खासदार/ आमदार ही पदे आणि स्वार्थी राजकारण नव्हते. डॉ. बाबासाहेबांनी त्यांच्या पक्षाच्या वतीने दोनदा उभे राहण्याचे सुचविले, पण कॉ. मोरेंनी नम्रपणे डॉ. बाबासाहेबांना नकार दिला. डॉ. बाबासाहेबांना देखील कॉ. मोरेंच्या प्रेमामुळे, आदरामुळे आग्रह करता आला नाही.
नासिक मंदिर प्रवेश सत्याग्रहाच्या वेळी कॉ. मोरे कम्युनिस्ट पक्षाचे सदस्य होते. पक्ष संघटना आणि कामगार संघटना बांधण्याचे काम त्यांच्याकडे होते. त्यांच्या पक्षाची त्यांच्याकडून मोठी अपेक्षा होती. १९३० साली ‘आव्हान‘ नावाचे वर्तमानपत्र सुरू केले. त्यात शेतकरी व अस्पृश्य यांचे लढे आणि त्यांच्या समस्या मांडल्याच, पण नासिक मंदिर सत्याग्रह समर्थनार्थ स्वतःच्या अध्यक्षतेखाली सभा घेतल्या. आणि त्यासाठी निधी गोळा केला. एवढेच नव्हे, तर पक्षाच्या कार्यकर्त्यांना घेऊन त्यांचे नेतृत्व कॉ. बाबुराव गरुड यांच्याकडे सोपविले. १९३०-३१ च्या दरम्यान मोरे यांचे काम कुलाबा जिल्ह्यात सुरू असताना गिरणी कामगार, गोदी कामगार, रेल्वे कामगार, बी.ई.एस.टी. कामगार यांच्या संघटनेत नेते सक्रिय होते. ‘रेड ट्रेड युनियन काँग्रेस‘ची स्थापना करण्यात आली. तिच्या नेतृत्वाखाली गिरणी कामगार युनियनची कार्यकारिणी निवडण्यात आली. यात कॉ. जांभेकर, कॉ. मोरे यांची निवड झाली. या युनियनच्या कार्यालयात पाण्याची दोन मडकी दिसू लागली. एक अस्पृश्यांसाठी आणि एक स्पृश्यांसाठी. कॉ. मोरेंना हा प्रकार खटकला. कॉ. मोरेंनी कॉ. रणदिवेंच्या हे कानावर घातल्यावर तेही गोंधळले. मोरे एवढेच म्हणाले, ‘‘मडके एकच ठेवा. जाती-पातीचा विटाळ ज्यांना असेल ते बाहेर हॉटेलात पाणी पितील. यातून आपणही कम्युनिस्ट जाती-पातीच्या बाबतीत किती कठोर आहोत, हेही स्पष्टपणे लोकांपुढे जाईल. असे आपण निर्भयपणे करीत नाही, म्हणूनच दलितांची स्वतंत्र चळवळ उभी राहलेली आहे.‘‘ १९३३ नंतर कार्यालयातील पाण्याचे मडके कायमचे फोडण्यात आले. आणि एकच मडके सगळ्यांसाठी दिसू लागले. ही आंबेडकरांच्या स्वतंत्र चळवळीने कम्युनिस्ट चळवळीला दिलेली देन आहे.
कॉ. मोरे महार समाज सेवा संघाचे चिटणीस होते. ठिकठिकाणी सामाजिक, राजकीय विषयांवर केशव ठाकरे, श्यामराव परुळेकर, एस. व्ही. देशपांडे इत्यादी मान्यवरांची व्याख्याने आयोजित करून शोषित समाजाला जागृत करण्याचे काम कॉ. मोरे यांनी निःस्वार्थपणे केले. त्यामुळे समाज बोलू लागला. जो समाज मुका-बहिरा होता तो जागृतीचे गाणे गाऊ आणि ऐकू लागला. १९३० च्या दरम्यान मोरे कम्युनिस्ट पक्षात सामील झाले. मानवाच्या अंतिम शोषण मुक्तीचे काम ते करावयास निघाले होते, हे ऐकल्यावर कॉ. मोरेंवर डॉ. बाबासाहेब रागावले नाहीत. त्यांचे धाडस पाहून ते म्हणाले, ‘‘मी तुझ्या प्रामाणिकपणाने व ध्येयवादाने भारावून गेलो आहे. मला तुझा अभिमान वाटतो. मला एक शिष्य असा लाभला की, जो माझ्या जातीचा आहे. भेकड नाही. शूर आहे तो स्वतःच म्हणतो मी तुम्हाला जाणीवपूर्वक सोडून अखिल मानव जातीच्या मुक्तीच्या लढाईत सामील व्हायला जात आहे!! शेवटी डॉ. बाबासाहेब म्हणाले, ‘‘तिकडे जाऊनही तू किमान माझ्या वर्तमानपत्र चालविण्याच्या कार्यातही सहभागी राहिलास तर मला आनंदच वाटेल. शेवटी तुझी मर्जी. माझा तुझ्या जाण्याला बिलकूल विरोध नाही,‘‘ अशा तर्हेने कॉ. मोरेंना निरोप देण्यात आला. आज कित्येक वर्षांनी दासगावला त्यांच्या नावाने शाळेचे उद्घाटन होत आहे. शैक्षणिक चळवळीचे स्मारक नवीन येणार्या पिढीला सतत प्रेरणा देईल. कॉ. मोरेंच्या कार्याचे तिथल्या भावकीने स्मरण केले हेही कमी महत्त्वाचे नाही. शोषितांच्या चळवळीसाठी जो जगतो आणि खपतो ती माती कधीतरी त्या कार्यकर्त्याची दखल घेते. कार्यकर्ता एकदाच जन्माला येतो. अर्थात कॉ. मोरेंसारखा ध्यासाने प्रेरित झालेला. ११ मे १९७२ साली मोरे यांचे मुंबईत निधन झाले. त्यांचे कोणत्याही प्रकारचे धार्मिक विधी झाले नाहीत. कॉ. मोरे यांच्या परिवाराने स्मशानातून त्यांच्या अस्थी आणल्या नाहीत वा मरणोत्तर धार्मिक विधीही केले नाहीत. ‘‘मोरे जरी कम्युनिस्ट होते तरी डॉ. बाबासाहेबांच्या सर्वात जवळचे जर कोण वाटत होते तर मोरे! असा बाबासाहेबांचा आवडता चेला हरपला आहे, अशा शब्दात डॉ. बाबासाहेबांच्या अनुयायांनी त्यांना आदरांजली वाहिली होती. यातच कॉ. मोरे किती मोठे होते ते दिसून येते.
रमाकांत जाधव
संत चोखोबांचे सुमारे ३५० अभंग आजच्या घडीला उपलब्ध आहेत
संत - संत चोखामेळा
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संत चोखामेळा
तुका म्हणे तुम्ही विचारांचे ग्रंथ। तारिले पतित तेणे किती।।
खुद्द तुकोबाराय ज्यांच्याबद्दल असे म्हणतात, ते पतितांना तारणारे व उपेक्षितांची र्कैफियत देवापुढे तळमळीने मांडणारे संत.
संत चोखोबा हे संत ज्ञानेश्र्वरांच्या प्रभावळीतले संत! संत शिरोमणी नामदेव हे त्यांचे गुरू होत. तत्कालीन सामाजिक विषमतेमुळे ते होरपळून निघाले. ते शूद्र-अतिशूद्र, गावगाडा, समाज जीवन, भौतिक व्यवहार, उच्चनीचता व वर्णव्यवस्था यांच्या विळख्यात अडकले.
संत चोखामेळा हे प्रापंचिक गृहस्थ. ते उदरनिर्वाहासाठी मोलमजुरी करत, पण ते विठ्ठलाच्या नामात सतत दंग होते. गावगाड्यातील शिवाशिवीच्या वातावरणात त्यांचा श्र्वास कोंडला जात होता. दैन्य, दारिद्रय, र्वैफल्य यांमुळे ते लौकिक जीवनात अस्वस्थ होते. परंतु प्रत्यक्ष परमेश्र्वराने त्यांना जवळ केले, त्यांना संतसंग लाभला त्यांना मंदिरांत प्रवेश नव्हता. श्रीविठ्ठलाला त्यांना इतरांप्रमाणे उराउरी भेटावे असे खूप वाटत होते. परंतु ते सावळे, गोजिरे रूप महाद्वारातूनच पाहावे लागे, ही खंत त्यांच्या मनात होती. चंद्रभागेच्या वाळवंटात आध्यात्मिक लोकशाही संत ज्ञानदेवांमुळे १३ शतकात उदयाला आली म्हणून संत चोखोबा म्हणतात, खटनट यावे, शुद्ध होऊनी जावे। दवंडी पिटीभावे डोळा।। ...
असा पुकारा करून त्यांनी वारकरी संप्रदायातील अध्यात्मनिष्ठ, अभेद भक्तीचे लोण आपल्या उपेक्षित बांधवांपर्यंत नेऊन पोहोचवले. आत्मविकासाची संधी तत्कालीन समाजरचनेतील अगदी तळातील लोकांनाही मिळावी असे ज्ञानेश्र्वरादी सर्वच संतांना प्रांजळपणे वाटत होते. त्याच वेळी संत चोखोबांनी भक्तिमार्गाचा संदेश आपल्या अभंगांतून समाजबांधवांना दिला.
संत चोखोबांचे भावविश्र्व अनुभवण्याचा प्रयत्न केला असता, एक मूक आक्रंदनाचा अनुभव येतो. संस्कारसंपन्न,संवेदनक्षम,भक्ति
धाव घाली विठु आता। चालू नको मंद।
बडवे मज मारिती। ऐसा काही तरी अपराध।।
जोहार मायबाप जोहार। तुमच्या महाराचा मी महार।
बहु भुकेला जाहलो। तुमच्या उष्ट्यासाठी आलो।।
आमुची केली हीन याती। तुज कां न कळे श्रीपती।
जन्म गेला उष्टे खाता। लाज न ये तुमचे चित्ता।।
ऊस डोंगा परि । रस नोहे डोंगा। काय भुललासी वरलीया रंगा।।
चोखा डोंगा परि। भाव नोहे डोंगा।।
विठ्ठल विठ्ठल गजरी। अवघी दुमदुमली पंढरी।
बडवे मज मारिती। ऐसा काही तरी अपराध।।
जोहार मायबाप जोहार। तुमच्या महाराचा मी महार।
बहु भुकेला जाहलो। तुमच्या उष्ट्यासाठी आलो।।
आमुची केली हीन याती। तुज कां न कळे श्रीपती।
जन्म गेला उष्टे खाता। लाज न ये तुमचे चित्ता।।
ऊस डोंगा परि । रस नोहे डोंगा। काय भुललासी वरलीया रंगा।।
चोखा डोंगा परि। भाव नोहे डोंगा।।
विठ्ठल विठ्ठल गजरी। अवघी दुमदुमली पंढरी।
हे त्यांचे अभंग जनमानसामध्ये आजही लोकप्रिय आहेत.
आम्हा न कळे ज्ञान न कळे पुराण। वेदांचे वचन न कळे आम्हा।।
चोखा म्हणे माझा भोळा भाव देवा। गाईन केशवा नाम तुझे।।
जन्मता विटाळ मरता विटाळ। चोखा म्हणे विटाळ आदिअंती।।
आदि अंती अवघा, विटाळ साचला। सोवळा तो झाला कोण न कळे।
चोखा म्हणे मज नवल वाटते। विटाळापरते आहे कोण।।
या रचनांतून उपरोक्त उल्लेख केलेल्या भावभावना दिसात. चोखा म्हणे माझा भोळा भाव देवा। गाईन केशवा नाम तुझे।।
जन्मता विटाळ मरता विटाळ। चोखा म्हणे विटाळ आदिअंती।।
आदि अंती अवघा, विटाळ साचला। सोवळा तो झाला कोण न कळे।
चोखा म्हणे मज नवल वाटते। विटाळापरते आहे कोण।।
कर जोडोनिया दोन्ही। चोखा जातो लोटांगणी।।
महाविष्णूचा अवतार। प्राणसखा ज्ञानेश्र्वर।।
महाविष्णूचा अवतार। प्राणसखा ज्ञानेश्र्वर।।
या वैशिष्ट्यपूर्ण रचनेत चोखोबा ज्ञानेश्र्वर माउलींबद्दल प्राणसखा हा अतिशय सुंदर शब्द सहजगत्या योजून जातात. यातून तेराव्या शतकातील या संतकवी चे साहित्यगुणही दिसून येतात.
त्यांच्या कुटुंबातील सर्वच जण हरिभक्ती परायण होते. त्या सर्वांचे श्रीविठ्ठलावर अनन्यसाधारण प्रेम होते. त्यांची पत्नी सोयराबाई हिचे बाळंतपण स्वत: विठाई माऊलीने नणंदेचे रूप घेऊन केले अशी कथा प्रचलित आहे. संत चोखोबांचा मुलगा कर्ममेळा हा पण संत परंपरेत आहे. सोयराबाई व कर्ममेळा यांच्याही काही सुंदर अभंग- रचना आहेत. संत चोखोबांचे मेव्हणे बंका महार व बहीण निर्मळा यांच्याही काही उत्तम रचना आहेत. संत चोखोबांच्या भक्तीची उंची फार मोठी होती. ते स्वत:ला विठू पाटलाचा बलुतेदार, म्हणून समजत असत.
संत चोखोबा मंगळवेढ्याचे (जिल्हा सोलापूर) होते. त्यांना उपेक्षित बांधवाच्या उद्धाराची सतत चिंता होती. त्यांना समान-हक्क मिळावेत, समाजातील तेढ कमी व्हावी, जातींमधील संघर्षाची भ्रामक कल्पना नष्ट व्हावी यासाठी त्यांनी भक्तिमार्गाद्वारे प्रयत्न केले.
संत चोखामेळा यांची समाधी - पंढरपूर
गावगाड्यातील गावकुसाचे काम चालू असताना एका दुर्दैवी अपघातात त्यांचा अंत झाला, असे उल्लेख त्यांच्याविषयीच्या लेखनात आढळतात. संत नामदेवांनी त्यांच्या सर्व अस्थी गोळा केल्या. त्यातून विठ्ठल विठ्ठल असा नाद त्यांनी ऐकला. संत नामदेवांची महाद्वारात जिथे पायरी आहे, त्याच्या बाजूला संत चोखोबांची समाधी पंढरपूरमध्ये आहे. संत बंका (चोखोबांचे मेव्हणे) व संत नामदेव यांनी त्यांच्या रचनांमध्ये संत चोखोबांबद्दल आपले भाव व्यक्त केले आहेत -
चोखा चोखट निर्मळ। तया अंगी नाही मळ।।
चोखा प्रेमाचा सागर। चोखा भक्तिचा आगर।।
चोखा प्रेमाची माउली। चोखा कृपेची साऊली।।
चोखा मनाचे मोहन। बंका घाली लोटांगण।।
(- संत बंका)
चोखा प्रेमाचा सागर। चोखा भक्तिचा आगर।।
चोखा प्रेमाची माउली। चोखा कृपेची साऊली।।
चोखा मनाचे मोहन। बंका घाली लोटांगण।।
(- संत बंका)
चोखा माझा जीव चोखा माझा भाव। कुलधर्म देव चोखा माझा।।
काय त्याची भक्ति काय त्याची शक्ति। मोही आलो व्यक्ति तयासाठी।।
माझ्या चोखियाचे करिती जे ध्यान। तया कधी विघ्न पडो नदी।।
नामदेवे अस्थि आणिल्या पारखोनी। घेत चक्रपाणी पितांबर।।
(-संत नामदेव)काय त्याची भक्ति काय त्याची शक्ति। मोही आलो व्यक्ति तयासाठी।।
माझ्या चोखियाचे करिती जे ध्यान। तया कधी विघ्न पडो नदी।।
नामदेवे अस्थि आणिल्या पारखोनी। घेत चक्रपाणी पितांबर।।
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